इंदौर -
इंदौर का मदर मिल्क बैंक देश में रोल मॉडल बन चुका है। साल 2023 में सरकारी एमटीएच में खोले गए इस सेंटर से अब तक करीब 1 हजार से अधिक नवजातों की जान बचाई गई है। सेंटर में काउंसलिंग के बाद 1 हजार से अधिक महिलाओं ने करीब 210 लीटर दूध डोनेट किया है।
एमटीएच प्रबंधन के मुताबिक, 2023 से मिल्क बैंक शुरू होने के बाद नवजात मृत्यु दर 25% से घटकर 11 तक आ गई है। कई बार तो यह 10% से कम भी रही है। अब डिस्चार्ज रेट भी 85% हो गया है।
दो साल पहले हुई थी शुरुआत
दरअसल, मां का दूध बच्चों के लिए बहुत ही जरूरी है। अगर किन्हीं कारणों के चलते न्यू बोर्न बेबी को मां का दूध नहीं मिले और वह कमजोर, बीमार, अनाथ या प्री टर्म हो तो उसकी मौत हो जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए दो साल पहले इंदौर में प्रदेश के पहले 'मदर मिल्क बैंक' की शुरुआत हुई।
सरकारी एमटीएच में यह मिल्क बैंक खोला गया। इसका पैटर्न कुछ ब्लड बैंक जैसा ही है, लेकिन डोनेट किए दूध को स्टोर करना और फिर उसे संबंधित बच्चों को उपलब्ध कराने की प्रोसेस भी अद्भुत है। इसके पूर्व संबंधित प्रसूता जिसे अपने बच्चे को दूध पिलाने के अलावा अन्य बच्चों को भी डोनेट करने के लिए उसकी काउंसलिंग की जाती है। इन दो सालों में इस काम में तेजी आई है। 1 हजार से ज्यादा बच्चों को मां का दूध उपलब्ध कराया गया।
प्रदेश के इकलौते इस 'मदर मिल्क बैंक' से मालवा-निमाड़ और प्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के बच्चों को जन्म से ही किसी अन्य मां का पौष्टिक दूध मिला।
सबसे पहले जानिए, मदर मिल्क बैंक की जरूरत क्यों पड़ी
देश के कई शहरों और कस्बों में मां का दूध नहीं मिलने से नवजातों की मृत्यु दर बढ़ने लगी थी। इसी गंभीर स्थिति को देखते हुए नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) ने मध्यप्रदेश में इंदौर को मदर मिल्क बैंक के लिए उपयुक्त माना। साल 2022 में करोड़ों की लागत से इंदौर में महाराजा तुकोजीराव हॉस्पिटल (MTH) का निर्माण हुआ, जो मेटरनिटी हॉस्पिटल है। इसके साथ ही एमवाय अस्पताल का गायनिक विभाग भी यहीं शिफ्ट कर दिया गया।
इसी दौरान एनएचएम और एमजीएम मेडिकल कॉलेज की मदद से कॉम्प्रिहेंसिव लेक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर (CLMC) यानी मदर मिल्क बैंक की शुरुआत की गई। चूंकि उस समय कोरोना का अंतिम दौर चल रहा था, इसलिए इसकी शुरुआत बेहतर नहीं रही। लेकिन मार्च 2023 से इसका संचालन पूरी तरह सक्रिय हो गया, जिससे जरूरतमंद नवजातों को समय पर मां का दूध उपलब्ध कराया जा रहा है।
दूसरी मां के दूध से भी बच सकती है किसी और के बच्चे की जान
एमटीएच के नोडल अधिकारी और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनील आर्य बताते हैं कि प्रीमैच्योर या SNCU (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में भर्ती गंभीर नवजातों को इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। अगर इन्हें समय पर मां का दूध मिल जाए तो उनकी जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। कई बार बच्चा अनाथ होता है, मां की मौत हो जाती है, या किसी कारणवश दूध नहीं बनता। ऐसे में मां का दूध मिलना मुश्किल हो जाता है। इन्हीं हालातों के लिए मदर मिल्क बैंक की शुरुआत की गई, ताकि किसी दूसरी मां के पोषक दूध से भी नवजात को नया जीवन मिल सके।
चार राज्यों के बच्चों को मिला फायदा
इंदौर के एमटीएच अस्पताल में प्रसूताओं के लिए करीब 150 बेड की व्यवस्था है, जिसमें नवजात शिशुओं के लिए भी पर्याप्त सुविधा है। साथ ही यहां SNCU (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) की क्षमता लगभग 60 बेड की है।
यहां सिर्फ इंदौर ही नहीं, बल्कि भोपाल, ग्वालियर, मंदसौर, गुना, आगर मालवा, झाबुआ, खंडवा, बुरहानपुर सहित मालवा-निमाड़ के कई जिलों की महिलाएं और उनके नवजात शिशु भर्ती होते हैं। इसके अलावा गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र से भी सीमाओं से लगे शहरों से भी महिलाएं इलाज और प्रसव के लिए यहां पहुंचती हैं।
शिशु मृत्यु दर में कमी आई
अगर बच्चा एमटीएच में ही एडमिट है तो ही उसे मदर मिल्क बैंक से दूध उपलब्ध होगा। किसी दूसरे अस्पताल में एडमिट बच्चों के लिए यह सुविधा नहीं है। अगर उन्हें जरूरत है तो एमटीएच में ही एडमिट होना पड़ेगा। दरअसल इसके लिए भारत सरकार का नियम है कि बच्चा जिस अस्पताल के आईसीयू में एडमिट है वहीं के बच्चे को मिल्क बैंक से दूध उपलब्ध कराया जाएगा।
डॉ. आर्य के मुताबिक जब मिल्क बैंक नहीं था तब न्यू बोर्न बेबी में इन्फेक्शन और मृत्यु दर 22 से 25% थी। 2023 से मिल्क बैंक शुरू होने के बाद यह घटकर अब 11 से 12% तक आ गई है। कई बार तो यह 10% से कम भी रही है। अब डिस्चार्ज रेट भी 85% हो गया है।
महिलाओं की होती है लंबी काउंसलिंग
कई महिलाओं की सोच यह रहती है कि दूध डोनेट करने से वे कमजोर हो जाएंगी। उनके खुद के बच्चे को कम दूध मिलेगा, जातिगत, अंधविश्वास सहित कई कारण होते हैं जिससे वे आसानी से राजी नहीं होती। मदर मिल्क बैंक मैनेजर पारुल शिवहरे ने बताया कि मां का दूध डोनेट करने के लिए महिलाओं की काउंसलिंग की जाती है। उन्हें बताया जाता है इससे उन्हें या उनके बच्चे को कोई खतरा नहीं है। उनके बच्चे को पर्याप्त दूध मिलने के बाद ही इसे दूसरे के बच्चों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
महिलाओं को हकीकत बताई जाती है कि संबंधित बच्चे की मां बीमार है, आईसीयू में हैं, वह दूध नहीं पिला सकती। किसी मामले में गोद लिए या लावारिस बच्चे रहते हैं। वह भी बताया जाता है कि उन्हें मां के दूध की सख्त जरूरत है। कई महिलाएं ऐसी होती हैं जिन्हें जुड़वां बच्चे हैं। कम दूध मिलने से वे कमजोर रहते हैं। इसके बाद वे राजी हो जाती हैं।
ऐसे मिला 1 हजार से ज्यादा बच्चों को नया जीवन
मां का दूध डोनेट करने के लिए बीते 2 सालों में यहां 15 हजार से ज्यादा प्रसूता महिलाओं की काउंसलिंग की गई। इसमें से 1 हजार से ज्यादा महिलाओं ने अपना दूध डोनेट किया। इसकी मात्रा 210 लीटर से ज्यादा है। जिससे करीब 1 हजार बच्चों को नया जीवन मिला।
जानिए क्या कहती हैं मिल्क डोनर्स महिलाएं
मामले में दूध डोनेट करने वाली मां और ऐसी महिलाएं जिनके नवजातों को अन्य मां का दूध मिल्क बैंक के माध्यम से उपलब्ध हुआ, उनसे बात की। डोनेट करने वाली महिला ने बताया कि उसे इसे पूरे प्रोसेस की जानकारी नहीं थी। फिर जब पूरा सिस्टम समझ में आया तो बीते चार दिनों से रोजाना मिल्क बैंक को अपना दूध डोनेट कर रही है। उन्हें खुशी है कि उनके कारण दूसरे बच्चों को नया जीवन मिला है।
कुछ समय पहले मुंबई की एक महिला के नवजात की वहां मौत हो गई। एक महिला को जब यह पता चला कि इंदौर में बच्चों को दूध की जरूरत रहती है तो वह यहां आई और नियमित अपना दूध डोनेट किया।
प्रदेश के अन्य सरकारी अस्पतालों के लिए बना रोल मॉडल
उधर, NHM द्वारा लगातार इसका रिव्यू किया जा रहा है। पिछले दिनों हुई बैठकों में अब प्रदेश के अन्य मेडिकल कॉलेजों के अधीन सरकारी अस्पतालों में भी 'मदर मिल्क बैंक' की स्थापना की जाएगी। इसके लिए इंदौर का मदर मिल्क बैंक रोल मॉडल रहेगा। इस दिशा में प्रोसेस शुरू हो चुकी है।