महावीर जयंती के पावन मौके पर हम आपको राजस्थान के चमत्कारी और प्रसिद्ध जैन मंदिर और तीर्थ क्षेत्र के वर्चुअल दर्शन करा रहे हैं।
राजस्थान के पाली जिले के घाणेराव में स्थित मुछाला महावीर तीर्थ अपने आप में खास है। खास इसलिए है क्योंकि यहां भगवान महावीर की प्रतिमा पर मूंछ नजर आती हैं। भारत में इसके अलावा कहीं भी भगवान महावीर की प्रतिमाएं मूंछ में नहीं मिलती।
पाली शहर से करीब 73 किलोमीटर दूर है सादड़ी शहर। इस क्षेत्र के अरावली की पहाड़ियों और जंगल से घिरे गांव घाणेराव से 6 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में सूकी नदी किनारे यह पुराना चमत्कारी मंदिर है मुछाला महावीर तीर्थ।
प्रवेशद्वार पर पत्थर के हाथी करते हैं स्वागत
मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है। दोनों ओर पत्थर के हाथी बने हुए हैं। मंदिर में प्रवेश करने पर खंभों पर टिका विशाल खुला मंडप मिलता है।
मंदिर का गगनचुंबी शिखर और बड़ा रंगमंडप, फेरी के झरोखों की बारीक नक्काशी दार जालियां बेहतरीन स्थापत्य कला का नमूना पेश करती हैं।
मंदिर में नृत्य करती देवी देवताओं की मूर्तियां मन-मोहक हैं। मंदिर में चारों ओर कतारबद्ध देहरियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विराजमान हैं और चारों तरफ परिक्रमा मार्ग है।
ईश्वर के भव्य विमान के जैसे इस चौबीस जिनालय वाले भव्य मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया, इसके पुख्ता सबूत नहीं मिलते। फिर भी पुरावेत्ताओं और स्थापत्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंदिर 10वीं-11वीं सदी में निर्मित हो सकता है।
ऐसा भी कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई नंदीवर्द्धन के परिवार से संबधित सोहन सिंह ने करवाया था। यह उल्लेख यहां प्राचीन लिपि में एक शिलालेख पर भी मिलता है।
महाराणा कुंभा ने मूंछ का बाल उखाड़ा और बहने लगी दूध की धारा
पाषाण की प्रतिमा के मुख पर मूंछें निकल आने को लेकर इस मंदिर से जुड़ी एक दंतकथा प्रचलित है।
कहते हैं कि एक बार मेवाड़ के महाराणा कुंभा अपने सामन्तों के साथ यहां दर्शन करने आए। मंदिर के पुजारी अक्षयचक्र ने भगवान की प्रतिमा को नहलाया जल अर्पित कर आदर किया तो जल में एक बाल नजर आया।
एक सामंत ने इस पर कटाक्ष किया तो पुजारी अक्षयचक्र ने जवाब में कहा कि भगवान समय-समय पर अपनी इच्छा के अनुसार अनेक रूप धारण करते रहते हैं। इस पर हठीले महाराणा कुंभा ने इस बात को साबित करने का आदेश दे दिया। पुजारी को 3 दिन का समय दिया गया।
कहते हैं कि पुजारी अक्षयचक्र ने तीन दिन तक अखंड व्रत किया। जब उन्होंने मंदिर के गेट खोले तो सच में महावीर स्वामी की प्रतिमा के मुख पर मूंछें निकल आईं थी।
इस पर महाराणा कुंभा को यकीन नहीं हुआ। वे प्रतिमा के नजदीक गए और मूंछ का एक बाल खींचा। कुंभा ने जैसे ही ऐसा किया, तोड़े गए बाल की जगह से दूध की धारा फूट पड़ी। महाराणा कुंभा यह देख प्रतिमा के सामने नतमस्तक हो गए।
कहते हैं कि आज भी यहां भगवान महावीर की प्रतिमा का मुख-मंडल सुबह और शाम अलग-अलग मुद्राओं में नजर आता है। हालांकि अब मूल नायक की प्रतिमा पर मूंछें
नहीं हैं।
प्रकृति की गोद में बसे इस तीर्थ के आसपास एक धर्मशाला और भोजनशाला ही है। माना जाता है कि कई सदियों पहले मंदिर के आसपास घनी बस्ती थी। जो समय के साथ विस्थापित हो गई।
कहते हैं गजनवी ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद दोबारा इसका निर्माण करवाया गया।
कहते हैं गजनवी ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद दोबारा इसका निर्माण करवाया गया।
सोमनाथ जाते वक्त गजनवी ने क्षतिग्रस्त किया
कहा जाता है कि सोमनाथ (गुजरात) जाते हुए आक्रमणकारी मोहम्मद गजनवी इसी रास्ते से गुजरा था। उसने इस मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया। माना जाता है कि इसके बाद गजनवी की सेना रोगग्रस्त हो गई। घाणेराव को लूटता हुआ गजनवी गुजरात की ओर बढ़ गया। उसने मुख्य प्रतिमा को खंडित कर दिया था, जिसे बाद में लेप चढ़ाकर पहले की भांति बना दिया गया।
भगवान महावीर ने दुनिया को किया प्रेरित
जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 साल पहले वैशाली के क्षत्रियकुंड में हुआ। आज यह क्षेत्र बिहार राज्य में आता है।
राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र वर्धमान ने 30 साल की उम्र में सांसारिक जीवन त्यागा और संन्यास के रास्ते पर चल पड़े।
उन्होंने समाज को जीने का सही तरीका समझाने के लिए कुछ सिद्धांत दिए। इनमें 5 प्रमुख सिद्धांत हैं-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह यानी भोग की वस्तुओं का त्याग करना, अस्तेय यानी चोरी नहीं करना और ब्रह्मचर्य यानी इंद्रियों को अपने वश में करना।
उनकी शिक्षाओं ने दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रेरित किया। 486 ईसा पूर्व नालंदा बिहार के पावापुरी में उनका देवलोक गमन हुआ।