KHABAR: लोन सस्ते हो सकते हैं, मौजूदा EMI भी कम होगी, रिजर्व बैंक ने लगातार दूसरी बार ब्याज दर 0.25% घटाई, अब 6.0% हुई, पढ़े खबर

MP 44 NEWS April 9, 2025, 11:36 am Technology

मुंबई - रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी, RBI ने रेपो रेट को 0.25% घटाकर 6% कर दिया है। पहले ये 6.25% थी। यानी, आने वाले दिनों में लोन सस्ते हो सकते हैं। वहीं आपकी ईएमआई भी घटेगी। नए वित्त वर्ष में RBI की पहली मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी मीटिंग के फैसलों की जानकारी RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा आज 9 अप्रैल को सुबह 10 बजे दी। ये मीटिंग 7 अप्रैल को शुरू हुई थी। इस साल फरवरी में RBI ने रेपो रेट में 0.25% कटौती की थी इससे पहले वित्त वर्ष 2024-25 की आखिरी मीटिंग में RBI ने ब्याज दरों में 0.25% की कटौती की थी। फरवरी में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 6.5% से घटाकर 6.25% कर दिया था। मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की ओर से ये कटौती करीब 5 साल बाद की गई थी। रेपो रेट के घटने से क्या बदलाव आएगा? रेपो रेट घटने के बाद बैंक भी हाउसिंग और ऑटो जैसे लोन्स पर अपनी ब्याज दरें कम कर सकते हैं। वहीं ब्याज दरें कम होंगी तो हाउसिंग डिमांड बढ़ेगी। ज्यादा लोग रियल एस्टेट में निवेश कर सकेंगे। इससे रियल एस्टेट सेक्टर को बूस्ट मिलेगा। रेपो रेट क्या है, इससे लोन कैसे सस्ता होता है? RBI जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। रेपो रेट कम होने से बैंक को कम ब्याज पर लोन मिलेगा। बैंकों को लोन सस्ता मिलता है, तो वो अकसर इसका फायदा ग्राहकों को पास कर देते हैं। यानी, बैंक भी अपनी ब्याज दरें घटा देते हैं। रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता और घटाता क्यों है? किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है। इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। कमेटी ने सर्वसम्मति से रेपो रेट 0.25% घटाकर 6% करने के पक्ष में वोट किया। कमेटी ने अपना रुख न्यूट्रल से बदलकर अकोमोडेटिव करने का फैसला किया। ट्रेड फ्रिक्शन के कारण ग्लोबल ग्रोथ पर असर पड़ने से डोमेस्टिक ग्रोथ भी बाधित होगी। हायर टैरिफ का एक्सपोर्ट पर प्रभाव पड़ेगा। मैन्युफैक्चरिंग एक्टिविटी में सुधार के संकेत हैं। क्रूड की कीमतों में गिरावट से महंगाई को कंट्रोल में रखने में मदद मिलेगी। कंज्यूमर से मर्चेंट UPI ट्रांजैक्शन की लिमिट पर फैसला करने का अधिकार NPCI को देंगे। मौजूदा समय में पर्सन-टु-मर्चेंट पेमेंट की लिमिट 2 लाख रुपए है। गोल्ड लोन को लेकर नए गाइडलाइंस जारी की जाएंगी। वित्त वर्ष 2025-2026 के लिए GDP अनुमान क्या है? वित्त वर्ष 2025-2026 के लिए महंगाई अनुमान क्या है? दाल और सब्जियां सस्ती होने से फरवरी में रिटेल महंगाई दर घटकर 3.61% पर आ गई है। ये महंगाई का 7 महीने का निचला स्तर है। जुलाई 2024 में महंगाई 3.54% पर थी। वहीं जनवरी 2025 में महंगाई 4.31% थी। RBI की महंगाई को लेकर रेंज 2%-6% है। फरवरी महीने में थोक महंगाई बढ़कर 2.38% पर आ गई। इससे पहले जनवरी में महंगाई 2.31% पर थी। फूड प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट बढ़ने से महंगाई बढ़ी है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने आज यानी 17 मार्च को ये आंकड़े जारी किए थे। आमतौर पर हर दो महीने में होती है RBI की मीटिंग मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी में 6 सदस्य होते हैं। इनमें से 3 RBI के होते हैं, जबकि बाकी केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। RBI की मीटिंग आमतौर पर हर दो महीने में होती है। बीते दिनों रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025-26 की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठकों का शेड्यूल जारी किया था। इस वित्तीय वर्ष में कुल 6 बैठकें होंगी। पहली बैठक 7-9 अप्रैल को हो रही है।

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