नीमच ज़िले में अतिवृष्टि और फ़सलो के नुक्सान का वे सभी ज़िम्मेदार जनप्रतिंधि जो अपने को किसान हितेषी नेता निरूपित करते हैं मीडिया के माध्यम से ही काम चला रहे है और स्वयं का प्रचार प्रसार कर रहे है और अपने को किसान हितेषी बता रहे है.. क्या ज़िले के ज़िम्मेदार जनप्रतिंधि जो किसान हितेषी नेता बन रहे है यह सुनिश्चहित करेंगे कि कितनी समय सीमा में तत्काल कोई बड़ी राहत किसानों के हित में प्रदेश और केंद्र सरकार से दिलवा देंगे ? किसानों के हित में सबसे बढ़िया निर्णय यही होगा सभी किसानों को मुआवजा मिले क्योंकि अभी तो सिर्फ नाम मात्र के किसानों ने नाम मात्र की खेती से सोयाबीन उड़द मूंगफली अन्य फसलें निकाली होगी बाकी हर किसान की सोयाबीन सहित सभी फसलें खेत में खड़ी है तो कहीं कटी पड़ी है और वह अब लगने लगी वो सड़ी किसानों के ऊपर बहुत ही यह आई है आफत की घड़ीकड़वी सच्चाई तो यह हैं कि प्राकृतिक आपदा की मार को क्षेत्र ही नही सम्पूर्ण विश्व विभिन्न तरीक़ों से पीड़ित हो कर झेल रहा है . यह मध्यप्रदेश राज्य का दुर्भाग्य हैं कि केंद्र और राज्य की प्रजातांत्रिक सरकार दशकों से प्राकृतिक आपदाओं के बारे जान कर भी कोई ऐसा कारगर योजनाये नही बना पाई जिसके कारण किसानो को और आम आदमी को राहत मिल सके .प्राकृतिक आपदाओं के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र के लोग़ो को उसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता हैं . प्राकृतिक आपदा से निपटना और राहत दिलाना भी नेताओ द्वारा राजनीतिक का आधार बना दिया गया हैं . राजनीतिक दलो की राहत दिलवाने की कार्यशैली एवम् आरोप प्रत्यारोप लगाना एक तरह की प्रतिस्पर्धा बन गईं हैं . आपदा के समय जो समन्वय पीड़ित ,प्रशासन , सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधियो और विपक्ष के बीच होना चाहिये उसका अभाव स्पष्ट नज़र आता हैं जिसके कारण राहत योजनाओं में भ्रष्टाचार के साथ पात्र लोग़ो को तुरंत राहत नही मिल पाती हैं . दुर्भाग्य हैं प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये सरकारें निति बनाने और पीड़ितों को राहत दिलवाने के लिये अरबों रुपये प्रत्येक वर्ष केंद्र और राज्य सरकारें विगत कई दशकों से व्यय कर रही हैं लेकिन तथाकथित सिस्टम के कारण वे ज़मीन पर क्रियान्वयन नही होती हैं