KHABAR: लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ बोले- अब फासले नहीं, रिश्ते मजबूत होंगे, मारवाड़ के पांच गांवों के राजपुरोहितों का सिटी पैलेस में स्वागत किया, रस्में निभाई, पढ़े खबर

MP 44 NEWS April 28, 2025, 7:59 pm Technology

मारवाड़ के पांच गांवों के राजपुरोहितों की उदयपुर सिटी पैलेस के साथ 300 साल पहले टूटी परंपरा पिछले दिनों शुरू हुई थी। उन्होंने पैलेस में आकर पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन पर शोक जताया था। शोक के कारण बिना खाना ग्रहण वापस लौटे थे। अब डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के आग्रह पर आज सभी पैलेस पहुंचे। रिश्तों की परम्परा को निभाते हुए पूर्व राजपरिवार और राजपुरोहित का स्वागत सम्मान किया गया। उन्होंने कहा- ये पांचों गांव रिश्ते की नई कहानी लिखेंगे ताकि आने वाली पीढ़ियों में आगे गैप नहीं आए। बता दे कि ये पांच गांव पाली के देसूरी के पास स्थित घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव हैं, जो मेवाड़ की आखिरी सीमा के पास बसे हुए हैं। उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ का निधन होने के बाद डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने पांचों गांवों के राजपुरोहितों को सिटी पैलेस में आने का आमंत्रण भेजा था। इसके बाद सभी शोक जताने पैलेस पहुंचे थे। सिटी पैलेस पहुंचने के दौरान राजपुरोहित डा. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ से चर्चा करते हुए अब फासले नहीं होंगे, रिश्ते मजबूत होंगे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा- पांचों गांवों का तहदिल से आभार ज्ञापित करता हूं। मेवाड़ इनके उत्साह और अपनत्व को लेकर ऋणी है। इन गांव वालों के स्नेह को राखी ही नहीं हर त्योहार में ये रिश्ते बने रहेंगे। अब ये फासले नहीं होंगे। रिश्ते को और मजबूत रखेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी बहुत अच्छा संदेश देना चाहते है। गांव से मेवाड़ के लिए लाए उपहार पांचों गांवों से आज राजपुरोहित मेवाड़ और उनके लक्ष्यराज के बेटे हरितराज सिंह मेवाड़ के लिए उपहार लेकर आए। तलवार भेंट करने के बाद मेवाड़ को उपहार भेंट करते हुए रस्मों को पूरा किया। इसके बाद पाली से आए राजपुरोहित परिवार के सदस्यों का एक-एक कर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने स्वागत और अभिनंदन किया। राजपुरोहित ने परम्पराओं को निभाते हुए लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ को तलवार भेंट की सवा महीने तक भोजन ग्रहण का प्रश्न ही नहीं पिलोवणी गांव से आए रिटायर्ड आईएएस श्याम सिंह राजपुरोहित ने बताया- हम सारे गांव के लोग एक महीने पहले यहां आए थे। उस समय भोजन का आग्रह किया गया था। हम ब्राह्मण और राजपुरोहित है तो सवा महीने तक भोजन ग्रहण करने का कोई प्रश्न ही नहीं था। डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के आग्रह पर आज हम यहां आए हैं। रिश्तों की कहानी नए सिरे से लिखेंगे श्याम सिंह राजपुरोहित ने बताया- इन गांवों का सदियों से मेवाड़ के राजघराने से निकट का संबंध रहा था। कुछ समय में किन्ही ज्ञात-अज्ञात कारणों से लंबा गैप पड़ गया था। करीब तीन शताब्दी के गैप के बाद मेवाड़ में लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने सदियों पुरानी परम्परा को पुनर्जीवित किया। पांचों गांवों की तरफ से उनका आज बहुमान किया है। उनकी तरफ से भी हमारा अभिनंदन किया गया। पीढ़ियों से चले आ रहे रिश्ते को सतत नदी के प्रवाह की तरह बहाते रहेंगे। परिवार के साथ संबंध प्रगाढ़ रहेगा। उन्होंने कहा- हमारी बहनें बहुत सालों तक सिटी पैलेस में राखी भेजती आई है। जो बीत गया, उस पर शोक करने का मतलब नहीं है, भविष्य की भी​ चिंता करने की जरूरत नहीं है। हम वर्तमान में जीते है। आगे बढ़कर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने बहुत बड़ी पहल की है। ये रिश्ते बरकरार रहेंगे और पहले की तरह राखियां बहने भेजती रहेगी। पांचों गांवों में इस परम्परा की शुरुआत का पता चला तो अतिरिक्त उत्साह का संचार हुआ है। इस रिश्ते की कहानी को हम गांव वाले नए सिरे से लिखने जा रहे है। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने एक-एक कर सभी का स्वागत किया आखिर क्यों बंद हुई थी परंपरा 1- महाराणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी का युद्ध लड़ते हुए नारायण दास राजपुरोहित वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनकी वीरता और बलिदान के सम्मान में महाराणा ने उनके वंशजों को घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव गांव जागीर में दिए थे। वे कहते हैं कि हम राजपरिवार के सेनापति थे। हमने सेवाएं दी थीं। इसके बाद सदियों से उदयपुर सिटी पैलेस से गहरे संबंध रहे हैं। 2- पूर्व में इन गांवों की बहन-बेटियां हर साल सिटी पैलेस में राखी भेजती थीं। इसके बदले में राजमहल से उनके लिए चूंदड़ी (परंपरागत चुनरी) भेजी जाती थी। यह परंपरा लंबे समय तक चली। अचानक महल की ओर से चूंदड़ी भेजना बंद हो गया था। इसके बावजूद गांवों की बहन-बेटियों ने अगले तीन दशक तक राखी भेजना जारी रखा था। 3- जब पैलेस की ओर से कोई जवाब नहीं आया, तब गांव की बहन-बेटियों ने एक दिन बुजुर्गों को इकट्ठा करके एक वचन मांगा था। उन्होंने कहा था- जब तक महल से बुलावा नहीं आए, इन गांवों से कोई भी राजपुरोहित महलों में नहीं जाएगा। बुलावा नहीं आने पर ये परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई। 4- अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने इस ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्जीवित करने का फैसला लिया और पिछले महीने टेलीफोन के जरिए इन गांवों के लोगों को सिटी पैलेस आने का आमंत्रण भेजा। उन्होंने बीते 300 सालों से ठहरी परंपरा को पुनः जीवंत करने की पहल की।

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