नीमच - जिनालय सम्यक दर्शन की परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने का महत्वपूर्ण केंद्र होते हैं। प्रत्येक जैन समाज बंधुओ को नित्य देव दर्शन करना चाहिए क्योंकि मंदिर में आकर हम कुछ समय के लिए सांसारिक विकल्पों से निवृत होकर प्रभु की उपासना तथा आत्म दर्शन की ओर दृष्टि लगाते हैं।हम जिनालय में आकर परम शांति का अनुभव करते हैं।जैन मंदिर धर्म संस्कारों की परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने का स्थान है ।यह बात आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज ने कही ।वे दिगंबर जैन समाज मंदिर सभागार में दिगंबर जैन समाज मंदिर का वर्षों बाद इतिहास में पहली बार नव स्थापित लाल पत्थर से जीर्णोद्धार के बाद आयोजित एतिहासिक अमृत प्रवचन श्रृंखला में बोल रहे थे ।उन्होंने कहा कि देवगुरु शास्त्र मनुष्य के बुराई रुपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी दीपक बन उजाला करते हैं। जिनालय का पूजन से शुद्धिकरण करना परम सौभाग्य का विषय है रजत सिंहासन विराजित पर विराजित करना परम पुण्य का सौभाग्य है। अब मंदिर पूर्ण रूप से पूर्णता को प्राप्त हो गया है। यहां शास्त्र विराजित है। देव शास्त्र गुरु से परिपूर्ण यह जिनालय अब मोक्ष का द्वार के लिए संपूर्ण है। मनुष्य जीवन में हमें विनय का ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि देवगुरु शास्त्र के माध्यम से संत तीर्थंकर बन सकते हैं। केवल ज्ञानी परमात्मा को विराजित करवा सकते हैं। प्रतिमा साक्षात भगवान का स्वरूप होती है। परमात्मा के गुण को जीवन में आत्मसात करें यह महत्वपूर्ण कदम है। जिनेंद्र भगवान के गुण को जीवन में आत्मसात करने से विनय की प्राप्ति होती है और विनय मोक्ष का द्वारा होता है। जिनालय में जीवन को विनय युक्त बनाने का संस्कार मिलता है जिनालय में नियमित दर्शन कर अपना जीवन सार्थक करना चाहिए। विनय ही मोक्ष का द्वार बनता है। तप आराधना के प्रति विनय हो कर लक्ष्य प्राप्त कर संत अपने जीवन का कल्याण कर सकते हैं।धार्मिक अनुष्ठान में समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। इस अवसर पर मुनि श्री के पाद प्रक्षालन प्रमोद गोधा व परिवार जनों द्वारा किया। समाज के वरिष्ठ पदाधिकारीयों द्वारा मुनि श्री को श्रीफल अर्पित का आशीर्वाद ग्रहण किया गया।शास्त्र दान राकेश मुकेश शाह, प्रमोद रजत गोधा परिवार द्वारा किया गया। प्रवेश द्वार के समीप श्री फल से तोरण द्वार सजाया गया और उसकी पूजा की गई।कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य शांति सागर जी महाराज के चित्र पर दीप प्रज्वलित एवं माल्यार्पण परिवार एवं सीकर ,भीलवाड़ा, मनासा, सिंगोली से पधारे समाज के अतिथियों द्वारा किया।धर्म सभा का संचालन अजय कासलीवाल ने किया
आचार्य संघ के सानिध्य मे कार्यक्रम की श्रृंखला में 4 मई रविवार
सुबह 7 बजे शांतिधारा,
7.30 बजे 4 पाषाण की प्रतिमाओ को चांदी के सिंहासन पर विराजमान किया । चांदी के सिंहासन के लाभार्थी नीरज राहुल जैन,श्रीमती निर्मला कुनियाअनिल बज गोटे वाले लक्ष्मीनारायण सिंहल थे।, मंदिर
शुद्धिकरण एवं चरण पादुका स्थापना के धर्म लाभार्थी जैन ब्रदर्स परिवार थे। मंदिरजी का शुद्धिकरण मंदिर पर कुमकुम से समाज के आठ कन्याओं द्वारा स्वास्तिक वह हथेली के छापें बनाकर जल अभिषेक किया। संत निवास के निर्माण का मुहर्त वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ किया।