मेवाड़ के कृष्णधाम श्री सांवलिया जी में शुक्रवार को पांच राउंड में गिनती पूरी हुई। इस चतुर्दशी में 18 करोड़ 29 लाख 53 हजार 402 रुपयों का चढ़ावा आया है। जुलाई महीने में यह आंकड़ा 19.08 करोड़ का था। भंडार और भेंट कक्ष से 586 ग्राम 915 मिलीग्राम सोना और 135 किग्रा चांदी भी मिली है। यह पिछले साल से करीब 62 प्रतिशत ज्यादा है। मंदिर मंडल सीईओ एडीएम प्रशासन चित्तौड़गढ़ राकेश कुमार ने बताया- सांवलियाजी का भंडार साल में दो अपवाद छोड़कर हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर खुलता है। इस महीने की दान राशि की काउंटिंग पूरी हो गई। कुल मिलाकर 8 महीने में 124 करोड़ से भी ज्यादा की चढ़ावा राशि आई है। दावा किया जाता है कि सांवलिया सेठ मंदिर उत्तर भारत से सबसे अधिक चढ़ावे वाले मंदिरों में शामिल है। भक्त अपने बिजनेस या वेतन की कमाई का एक बड़ा हिस्सेदार या पार्टनर सांवलिया सेठ को अवश्य बनाते हैं। इसी पार्टनरशिप का कमिटमेंट वे हर माह यहां आकर सांवलिया सेठ के हिस्से को दान कर पूरा करते हैं। इस महीने कुल 14 करोड़ रुपए मिले चौथे और पांचवें चरण में 82 लाख 55 हजार 174 रुपए की गिनती हुई। तीन चरण में 13 करोड़ 38 लाख 45 हजार गिने जा चुके थे। इस महीने भंडार से कुल 14 करोड़ 21 लाख 174 रुपए नकद, 565 ग्राम सोना और 34 किलो 820 ग्राम चांदी की प्राप्ति हुई। पिछले साल इसी चतुर्दशी पर भंडार से 9.72 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। भक्तों ने सावन में चांदी से मढ़े झूले भी भेंट किए कई भक्त ऑफिस और भेंट कक्ष में भी नकद या ऑनलाइन दान करते हैं। इस बार कुल 4 करोड़ 8 लाख 53 हजार 228 रुपए, 21 ग्राम 915 मिग्रा. सोना और 322 किलो 955 ग्राम चांदी प्राप्त हुई। पिछले साल इसी महीने कार्यालय और भेंट कक्ष पर 1.54 करोड़ प्राप्त हुए थे। इस बार सावन मास में कुछ भक्त लकड़ी पर चांदी से मढ़े झूले भी भेंट कर गए। मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे से मिले थे सांवलिया सेठ बताया जाता है कि मंडफिया में रहने वाला एक ग्वाला भोलाराम गुर्जर रोज बागुण्ड तक गाय चराने जाता था। एक दिन उसे सपना आया कि वट के वृक्ष के नीचे सांवलिया सेठ की मूर्ति है। पहले तो ग्वाले ने ध्यान नहीं दिया। फिर दुबारा सपना आने पर उसने अपने हाथों से खुदाई की। वहां चार मूर्ति निकली। एक खंडित थी, जिसे वहीं रखा गया। इसके अलावा एक मूर्ति को स्थापित कर दिया गया। यह वही स्थान है, जिसे मंदिर का प्राकट्य स्थल कहा जाता है। एक मूर्ति भदसोडा गांव में स्थापित की गई। चौथी मूर्ति को भोलाराम मंडफिया लेकर आया और अपने घर के परिण्डे में स्थापित कर पूजा पाठ शुरू कर दी। धीरे-धीरे तीनों स्थानों पर मंदिरों और खासतौर पर मंडफिया में उसके घर वाले मंदिर की ख्याति तेजी से फैलने लगी।