NEWS : संविधान को खतरे में डालने का मतलब भारत के अस्तित्व को खतरे में डालना होगा - नीमच में शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान में बोले बादल सरोज, पढ़े खबर

MP 44 NEWS August 14, 2024, 3:09 pm Technology

नीमच - "दांव पर क्या है इसे तभी समझा जा सकता है जब यह ध्यान में रखा जाए कि इस बीच, सब कुछ के बाद जो हासिल हुआ है वह क्या है । इसे जानने के लिए जिस दिन देश आजाद हुआ था उस दिन के तथ्यों को याद करना होगा ।" इन शब्दों के साथ "भारत का संविधान:योगदान और चुनौतियां" विषय पर स्थानीय जांगीड़ ब्राह्मण धर्मशाला सभागार नीमच में अपने व्याख्यान की शुरुआत करते हुए लोकजतन के सम्पादक बादल सरोज ने बताया कि जिस रात देश की आजादी का ऐलान करने वाला पहला भाषण "नियति के साथ साक्षात्कार" पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू संसद के सेंट्रल हॉल में दे रहे थे तब वह हॉल ज्यादातर पैट्रोमैक्स की रोशनी से रोशन था - उस समय देश का कुल बिजली उत्पादन मात्र 1300 मेगावाट था। समूचे देश में बिजली से चलने वाली मोटर पम्प मात्र 1500 थीं । देश में सिर्फ 8431 प्राथमिक स्कूल, 496 काॅलेज और 20 यूनिवर्सिटी थी । देशवासियों की औसत आयु 32 वर्ष थी । सामाजिक असमानता इस कदर थी कि शासकीय कार्यालयों सहित पानी पीने के लिए 2 मटके - एक सवर्णों के लिए दूसरा अवर्णों के लिए - रखा जाना आम रिवाज था । स्त्रियों की दशा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 67 चरणों में हुए पहले आम चुनाव की मतदाता सूची में महिलाओं का नाम चौधरी साहब की बहू, रामदीन की मां, पटेल साहब की बहन और पटवारी जी बुआ जैसे रूप में दर्ज था । वे अपने नाम की पहचान तक से महरूम थीं । तमाम अवरोधों, अनेक बड़ी कमियों. ढेर सारे अधूरे कामों और विफलताओं के बाद भी यदि आज यह स्थिति बदली है तो इसलिए कि हमने एक संविधान बनाया, उस संविधान ने संघर्ष करने के अधिकार दिए और जनता ने अपनी मांगें उठाई - इन दोनों के मेल ने भारत को पाकिस्तान या म्यांमार या बांग्लादेश नहीं बनने दिया । इस वर्ष के शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान को देते हुए उन्होंने कहा कि यह संविधान अपने आप नहीं बना ; यह 1857 के विप्लव से 1919 के जलियांवाला बाग़ नरसंहार से होते हुए सन 47 तक चले जनता के स्वतन्त्रता संग्राम और कुरबानियों के बीच उसमे चली बहस का सार और निचोड़ है । यह बहस गुलाम क्यों हुए, आजाद कैसे होंगे, आजादी के बाद फिर से गुलाम न हो जाएँ इसके लिए क्या नीतियाँ बनायेंगे जैसे तीन विषयों के दायरे में थी और उस देश को अपने पांवों पर खड़ा करने के लिए थी जिसकी खेती, उद्योग धंधों और सामाजिक एकता को अंग्रेजों ने तहस नहस करके रख दिया था । उन्होंने कहा कि 22 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय भाषाओं, 19569 मातृभाषा व उनसे चार गुनी बोलियों वाली इस 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता वाले देश में संविधान ऐसी पहली किताब है जो यह कहती है कि सब बराबर होंगे, सारे राज्य भी बराबर होंगे, संघीय ढांचा होगा । स्वास्थ्य व शिक्षा पब्लिक सेक्टर में होंगे । संविधान में वर्णित नीति निर्देशक तत्व यह निर्देश देते हैं कि ऐसी नीतियाँ बननी चाहिए जिनसे दौलत और संपत्ति एक जगह एकत्र नहीं हो सके, अधिकतम आमदनी 100 रूपये हो तो न्यूनतम 10 से कम न हो । मगर राज करने वालों ने इसे भुला दिया और आज एक आदमी 112 करोड़ प्रति घंटा कमा रहा है तो दूसरा 90 करोड़ प्रति घंटा कमा रहा है - वहीं आबादी का विराट बहुमत 5000 महीने भी नहीं प्राप्त कर पा रहा । इसी विचलन और निजीकरण का परिणाम था कि कोरोना से 45 लाख लोग मर गए । आज भारत भुखमरे देशों में सबसे ऊपर आ गया । उन्होंने कहा कि हम हिंदुस्तान के रूप में तभी बचे रहेंगे अगर संविधान बचा रहेगा और ज्यादा मानवीय होता जाएगा । मगर आज जो हुकूमत है उसका इस संविधान में विश्वास नहीं है । वे उस मनुस्मृति के आधार पर देश चलाना चाहते हैं जिसकी वजह से हम 1200 वर्षों तक अंधेरे में रहे। चरक, सुश्रुत, वराहमिहिर, आर्यभट्ट की गणित,अंतरिक्ष व चिकित्सा की उपलब्धियों का वर्णन करते हुए बादल सरोज ने कहा कि ये उस दौर में हुयी जब सवाल उठाना जरूरी इंसान होने की पहचान माना जाता था । आज के हुक्मरान सवाल उठाने पर रोक लगाना चाहते हैं । संविधान हमारी आजादी को बनाए रखने की गारंटी ही है। ये इस देश के अस्तित्व का प्रश्न है। उन्होंने लोकतंत्र को कुंठित करने की साजिशों का जिक्र किया । कहा कि आज विधायक बनने को 10 करोड़ रूपये चाहिए। इस तरह पूँजी के चाकर राज में जा रहे हैं और असहमति, विरोध, आन्दोलन को प्रतिबंधित कर रहे हैं । इसकी वजह यह है कि हमने राजनीतिक लोकतंत्र तो बना लिया पर सामाजिक लोकतंत्र नहीं बना। एक नेता को शक्ति देंगे तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने वालों के झूठ का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि 5000 साल में ये देश धर्म के नाम से कभी नहीं चला । विवेकानंद कह गए हैं कि किसी धर्म को किसी दूसरे धर्म से खतरा नहीं है हर धर्म को उसके एजेंट से खतरा है। आखिर में उन्होंने आव्हान किया किया कि जिस तरह 376 दिन तक चलने वाले किसान आंदोलन, छात्रों और मजदूरों तथा महिलाओं के संघर्षों से बने वातावरण ने चुनाव परिणाम बदला है उसी तरह के संघर्ष आगे के दिनों में भी तेज करने होंगे । संविधान बचाना है तो संघर्ष को जिंदा रखना होगा। लगभग सवा घंटे तक चले इस प्रेरक उद्बोधन को सभागार में उपस्थित श्रोता मंत्रमुग्ध से सुनते रहे। कई बार सभागार करतल ध्वनि से गूंजता रहा। स्थानीय जांगिड़ ब्राह्मण धर्मशाला सभागार में जनवादी लेखक संघ नीमच द्वारा आयोजित इस सरस आयोजन की अध्यक्षता प्रोफेसर निरंजन गुप्त ने की और संचालन प्रियंका कविश्वर ने किया तथा के सी सेन ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर विजय बैरागी, किशोर जवेरिया, पृथ्वी सिंह वर्मा, प्रियंका शर्मा, जिनेंद्र सुराणा, कृपाल सिंह मंडलोई, तरुण बाहेती, चंद्रशेखर गौड़, बाबूलाल गौर, असद अंसार, हारून रशीद, शरद उपाध्याय, के के जैन, प्रिंस चुगवानी, राधेश्याम शर्मा, सुनील शर्म

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