KHABAR: खुदकुशी रोकना अब आशा कार्यकर्ताओं के जिम्मे:घर-घर जाकर पूछेंगी 5 सवाल; भोपाल, इंदौर समेत एमपी के 16 जिले हाई रिस्क जोन में, पढ़े खबर

MP44NEWS March 25, 2025, 1:14 pm Technology

मध्यप्रदेश में आशा कार्यकर्ताओं को अब एक नई जिम्मेदारी दी गई है। ये घर-घर जाकर लोगों से मन की बात कर उनकी मानसिक सेहत की जांच करेगी। दरअसल, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने सुसाइड प्रिवेंशन ट्रेनिंग प्रोग्राम (आत्महत्या रोकथाम प्रशिक्षण) शुरू किया है। इस प्रोग्राम में एमपी के 16 जिलों का चयन किया गया है। इन जिलों की करीब 1200 कार्यकर्ताओं को पिछले साल दिसंबर में ट्रेनिंग दी गई थी। ट्रेनिंग में उन्हें बताया गया कि उन्हें अपने इलाके के घरों में जाकर लोगों से पांच सवाल करना है। इन सवालों के जवाब से जो नंबर मिलेंगे उन्हें देखकर तय करना है कि उस व्यक्ति या परिवार को मानसिक इलाज की जरूरत है या नहीं। पहले जानिए इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की जरूरत क्यों पड़ी? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 1.71 लाख लोगों ने खुदकुशी की। इसमें मप्र के 16 हजार से ज्यादा लोग शामिल हैं। सुसाइड के मामले में महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद मप्र तीसरे नंबर पर है। इन आंकड़ों को देखते हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य मिशन ने मप्र में इसकी शुरुआत की है। एनएचएम (नेशनल हेल्थ मिशन) के मेंटल हेल्थ जॉइंट डायरेक्टर डॉ. शरद तिवारी का कहना है कि इस प्रोग्राम के तहत हर जिला अस्पताल में मन कक्ष बनाए गए हैं। वहीं हर मेडिकल कॉलेज में मनोचिकित्सक विभाग की स्थापना की गई है। प्रदेश के 16 जिलों में यह कार्यक्रम शुरू हो चुका है। आने वाले तीन साल में पूरे प्रदेश में इसकी शुरुआत की जाएगी। आशा कार्यकर्ताओं को क्यों चुना गया? डॉ. शरद तिवारी बताते हैं कि आशा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा नेटवर्क स्वास्थ्य विभाग के पास मौजूद है। ये लोगों से सीधे कनेक्ट रहती हैं। मप्र में हर 200 घरों से यानी 1 हजार की आबादी से आशा वर्कर सीधे जुड़ी हैं। उन्हें पता होता है कि किस घर में क्या परिस्थितियां हैं? आशा कार्यकर्ता के साथ टीकाकरण कर्मचारी भी लोगों से जुड़े होते हैं। उन्हें भी इस प्रोग्राम में शामिल किया गया है। ये घर-घर जाकर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की पहचान करेंगी। ये वर्कर खुद ट्रीटमेंट करने में सक्षम नहीं है, इसलिए इनका काम ऐसे मरीजों की पहचान कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताना और इलाज मुहैया कराना होगा। इन्हें हमने 'गेटकीपर' नाम दिया है। अब जानिए कैसे काम करेंगे 'गेटकीपर' भोपाल के जेपी अस्पताल को पोस्ट क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. राहुल शर्मा बताते हैं कि गेटकीपर का एक पूरा मॉड्यूल हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में तैयार किया गया है। इस मॉड्यूल काे इतना आसान बनाया गया है कि इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति गेटकीपर बन सकता है। इसके 7 पॉइंट्स हैं… अपने आसपास के लोगों के बीच भरोसा पैदा करना। ऐसे व्यक्ति जिनके मन में खुदकुशी के ख्याल आते हैं उनकी पहचान करना। उनके जोखिम वाले कारकों को पहचानना। सवालों के जरिए उनके तनाव के स्तर को जांचना। उन्हें मनोरोग चिकित्सक से कनेक्ट करना। टेली मानस और मनहित ऐप की सेवाओं से जोड़ना? उनका समय-समय पर फॉलोअप लेना। तीन केस से समझिए कैसे आशा कार्यकर्ताओं ने बचाई जान केस 1: खुदकुशी की कोशिश करने वाली युवती की जान बची भोपाल के एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की सीएचओ मीना शुक्ला ने गेटकीपर की ट्रेनिंग ली है। वह बताती हैं कि एक 18 साल की युवती ने कीटनाशक पीकर अपनी जान देने की कोशिश की थी। मगर, उसके भाई ने उसे बचा लिया। दरअसल, हमारी आशा कार्यकर्ता युवती से एक हफ्ते पहले ही मिली थी। उससे बातचीत करने के बाद पता चला था कि उसके प्रेमी ने शादी से इनकार कर दिया था। इस बात से वह मानसिक रूप से काफी परेशान थी। आशा कार्यकर्ता ने उसकी मानसिक स्थिति के बारे में परिजन को पहले ही बता दिया था। उसका ख्याल रखने की सलाह भी दी थी। उन्होंने इस सलाह को गंभीरता से लिया। युवती पर नजर रखी और समय रहते उसकी जान बचाई जा सकी। केस 2: किसान का पूरा परिवार परेशान था मीना बताती हैं कि इसी तरह एक गांव में आशा कार्यकर्ता को पता चला कि कैंसर से पीड़ित 55 साल के किसान ने दो दिन पहले खुदकुशी की कोशिश की थी। दरअसल, ओले गिरने से उसकी 3 एकड़ की फसल खराब हो गई थी। आर्थिक तंगी के चलते किसान ने पंखे से लटककर जान देने की कोशिश की, लेकिन कुर्सी खिसक गई और परिवार के लोगों की नींद टूट गई। किसान के परिजन इस कदम से बहुत परेशान थे, मगर किसी को बता नहीं पा रहे थे। जब आशा कार्यकर्ता को इस घटना का पता चला तो उसने किसान परिवार से ट्रेनिंग मॉड्यूल में बताए पांच सवाल पूछे। इनके जवाब के बाद आशा कार्यकर्ता को पता चल गया कि किसान परिवार डिप्रेशन का शिकार है। किसान को जिला अस्पताल में काउंसलिंग के लिए भेजा। वहां उसने बताया कि वह फसल खराब होने के साथ बेटे की शराब की लत से परेशान था। साथ ही कैंसर की बीमारी के चलते आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। इस काउंसलिंग के बाद किसान के कैंसर और बेटे की नशे की समस्या का इलाज हो रहा है। केस 3: तांत्रिक ने मानसिक बीमार को डॉक्टर के पास भेजा ये केस भिंड का है। एक तांत्रिक के पास तीन महीने से लगातार एक व्यक्ति अपनी समस्या लेकर आ रहा था। उसने तांत्रिक को बताया कि उसे खुदकुशी के ख्याल आ रहे हैं। तांत्रिक ने अपनी तरफ से सारे उपाय किए। इसके बाद भी उसे कोई इलाज समझ नहीं आया। उसने मरीज को ट्रेनिंग देने वाले डॉक्टर्स के नंबर दिए और उनसे मिलने को कहा। डॉक्टर्स से मिलने के बाद पता चला कि वह गंभीर मानसिक समस्या से ग्रसित है। 2 महीने से उसका इलाज चल रहा है। साइकोलॉजिस्ट डॉ. राहुल शर्मा कहते हैं कि हमने जादू - टोना, तंत्र - मंत्र, ताबीज देने वाले, मजार पर बैठे मौलाना, ज्योतिष, मंदिर के पुजारी, बाबाओं, सिद्ध स्थानों के मठाधीशों को भी गेटकीपर ट्रेनिंग दी है। उन्हें भी मेंटल हेल्थ के बारे में बता रहे हैं। ओपीडी में 40 से ज्यादा मरीज आते हैं, उनमें से 4-5 मरीज बाबा या तांत्रिक रेफर करते हैं। स्कूल टीचर्स, पुलिसकर्मियों को भी देंगे ट्रेनिंग भोपाल जिले के सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी कहते हैं कि आत्महत्या की रोकथाम की जिम्मेदारी सिर्फ मेडिकल फील्ड के लोगों की ही नहीं है। इसमें समाज के हर वर्ग को जोड़ने की जरूरत है। आने वाले समय में ऐसे लोग जो समाज से सीधे जुड़े हैं उन्हें भी गेटकीपर की ट्रेनिंग दी जाएगी। इनमें स्कूल टीचर्स, पुलिसकर्मी, सरपंच, क्लास मॉनिटर, कम्युनिटी लीडर, धार्मिक समूहों के प्रतिनिधि, सामाजिक संस्थाओं के सदस्य और पंचायत सदस्य शामिल होंगे। इन्हें ये ट्रेनिंग मिलेगी तो ये ऐसे लोगों की पहचान कर सकेंगे जो मानसिक रूप से परेशान हैं। इससे बहुत सारे लोगों की जान बच सकती है।

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