ऐसी प्रेरणा दायक स्टोरी जिन्होने विषम परिस्थितियों में भी यु.पी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।ऐसे सफल उम्मीदवारों के जज्बे को नमन करता हूँ। 1 मेनपुरी के रहने वाले श्री सूरज तिवारी 2017 में रेल दूर्घटना में दोनों पैर, एक हाथ और एक हाथ की दो उँगलिया कट गई थी इनके पिता मेनपुरी के एक गाँव में सिलाई की दुकान चलाते है, श्री सूरज द्वारा इतनी विषम परिस्थितियों में भी यु.पी.एस.सी. प ्रथम प्रयास में ही वर्ष 2022 में 917वीं रेंक प्राप्त की। 2केरल की निरूअन्तरपुरम की दीव्यांग महिला जिनका एक हाथ पाँच साल की उम्र में ही कट गया था उन्होंने लगातार तीन बार परीक्षा दी और तीसरी बार सफलता हांसिल की ओर यह सिद्ध कर दिया कि दिव्यांग होना किसी की सफलता में बाधा नहीं डाल सकती है। 3दिल्ली पुलिस में पदस्थ राम भजन कुमार है एवं इनके पिता मजदूरी का कार्य करते है इन्होंने 8 बार परीक्षा दी किन्तु हिम्मत नहीं हारी वर्ष 2022 में 667वीं रेंक हांसिल करते हुए सफलता प्राप्त की और यह सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा में गरीबी आड़े नहीं आती है। 4 ईश्वर गुर्जर की एक ऐसी कहानी है जो 10वीं में फेल हो गये थे दूसरी बार में सेकन्ड डिवीजन पास हुए 12वीं 68ः अंक प्राप्त किए किन्तु जुनुन था आई.ए.एस. बनने का तो निश्चित ही सफलता मिलती है। वर्ष 2022 में इन्हें सफलता मिली और यह सिद्ध कर दिया कि साधारण विद्यार्थी भी आई.ए.एस. कर सकता है। 5 भारती गुर्जर की कहानी है जो गोतम नगर की रहने वाली है 18 वर्ष की आयु में इनकी शादी हो गई दो बच्चीयां हुई वे स्कूल जाने लगी उसी स्कूल में भारती टीचर बन गई 38 वर्ष की आयु में उन्होंने 2020 में परीक्षा दी 2021 में परक्षा दी परिवार, रिश्तेदार व समाज के लोग भी बुरा भला कहने लगे अब इन्हें अपने बच्चों और परिवार पर ध्यान देना चाहिए लेकिन जुनुन था 2022 में पूनः परीक्षा दी मैंने सोच लिया था कि इस बार यदि सफलता नहीं मिली तो कभी परीक्षा नहीं दूंगी लक्ष्य हांसील किया और सफलता वर्ष 2022 में मिली अब गुर्जर समाज, रिश्तेदार गुणगान करने लगा व भारती से यह शिक्षा ली की गुर्जर समाज को भी जल्दी शादी न करते हुए उच्च शिक्षा पर पहले ध्यान दिया जाए। 6इशिता किशार:- यु.पी.एस.सी. 2022 की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली इशिता मूलतः पटना बिहार की होकर अनुसूचित जाति के अन्तर्गत आती है आपकी शिक्षा श्री राम कॉलेज नई दिल्ली में हुई पिता वायुसेना में अधिकारी थे व यह इनका तीसरा अटेम्प्ट था, आपने उत्तरप्रदेश केडर मांगा है निश्चित ही यह महिला वर्ग एवं अनुसूचित जाति के लिए गर्व की बात है। जब ये 11 वर्ष की थी जब ही इनके पिता का साया उठ गया था। 7 एक भेंस चराने वाली लड़की बनी आई.ए.एस.:- सी.वानपंथी मूलतः तमीलनाडू के छोटे से गांव की रहने वाली है आपके पिता का एक साधारण ड्रायवर है परिवार की माली हालात बहुत ही दयनीय है, सी.वानमंथी बचपन से भेंसे चाराती थी बहुत मुश्किल से उन्होंने 12वीं परीक्षा उत्तीर्ण की परिवार और समाज अब उसकी शादी करना चाहते थे किन्तु इस लड़की का एक सपना था कि वह एक आई.ए.एस. बने बिटियां ने पापा को समझाया और वे मान गये आगे पढ़ने के लिए 12वींके पश्चात कम्प्यूटर एजुकेशन में पोस्ट ग्रेजुएयशन किया पहले उसने प्रायवेट जॉब किया तथा परिवार को सहयोग करते हुए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करती रही तथा वर्ष 2015 में आई.ए.एस. बनी और परिवार व स्वयं का सपना पूरा किया। 8 गरीमा लोहिया जो बिना कोचिंग के 2022 में द्वितीय रेंक हांसिल की:- अब हम बात कर रहे है गरिमा लोहिया की ये मूलतः बिहार की रहने वाली है और दिल्ली में इनका एजुकेशन हुआ। इनकी विशेषता यह थी कि इनके द्वारा बिना कोचिंग के सेल्फ स्टडी में सेकण्ड अटेम्प्ट में ही 2022 में द्वितीय स्थान पाकर एक किर्तीमान और यह सिद्ध कर दिया कि सेल्फ स्टडी भी सफलता दिला सकती है। 9बिना बाप की बेटी प्रथम प्रयास में बनी आई.पी.एस.:- एक ऐसी बेटी जिसके पिता नहीं, माँ झाड़ु पोछा कर जीवन यापन करती है बेटी दिव्या तंवर जिनका कमरा 8 बाय 8 का बिना कोचिंग क्लास ज्वॉइन किए 438वीं रेंक हांसिल की इनके पिता का 2011 में केन्सर से स्वर्गवास हो गया। 10 किसान की बेटी बनी आई.ए.एस.:- हरियाणा की रहने वाली गरीब किसान की बेटी 22 वर्षीय मुस्कान ने यु.पी.एस.सी. 476वीं रेंक हांसिल की पापा किसान व माँ गृहणी है शिक्षा बी. एस.सी. तक है गरीब परिवार है, इतनी कम उम्र में आई.ए.एस. बनना बहुत ही गौरव की बात है। 11 बम्बई की झोपड़पट्टी में पले मोहम्मद हुसैन ने आई.ए.एस. परीक्षा पास की:- मोहम्मद हुसैन जो बम्बई की झोपड़ पट्टी में रहता है पिता मजदूरी करता है, माता हाउसवाइफ थी जहां पढ़ाई का कोई माहौल नहीं यहां तक कि झोपड़ पट्टी में रहने वालो को यह भी नहीं मालूम की यु.पी.एस.सी. क्या होता है साथ ही यहां पढ़ाई का माहौल बिल्कुल नहीं था हमेशा शोर, शराबा होता रहता था उस बीच रहकर लगातार पाँच बार परीक्षा एवं पांचवी बार में वर्ष 2022 में 577वीं रेंक हांसिल की और यह सिद्ध कर दिया कि सफलता में गरीबी बाधा नहीं बनती है यदि हमारी सोच सकारात्मक हो और जज्बा व जुनून हो कुछ कर दिखाने तो सफलता कदमों को चुमती है। 12बस ड्रायवर का बेटा बना आई.ए.एस.:- श्री मोहम्मद एहमद जो कि एक बस ड्रायवर का बेटा है उन्हेांने वर्ष 2022 में 296वीं रेंक हांसिल की इन्होंने 2019 से प्रयास प्रारम्भ किया, अपने द्वारा लगन से किए गए हार्ड वर्क से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। गरीबी अमीरी से सफलता में कोई अन्तर नहीं पड़ता। 13 निशा की पढ़ाई जब सोतेली माँ ने जब वह आई.ए.एस. की तैयारी कर रही थी और किताबे जला डाली लेकिन फिर भी आई.ए.एस. बनी:- हम बात कर रहे है निशा का एडमिशन सरकारी स्कूल में हुआ था और उसकी छोटी बहन कार्मल कॉन्वेन्ट में पढ़ती थी निशा की सोतेली माँ स्कूल के बाद घर का सारा काम करवाती थी एक दिन उसने कलेक्टर को देखा और उसने पिता से कहा पापा में कलेक्टर बन सकती हूँ पिता ने कहा हां बेटा, निशा ने ग्रेजुएशन किया निशा की माँ आगे उसे पढ़ने नहीं देती पिता ने जब उसको बुक्स खरीदने को पैसे दिये वह किताब लाई लेकिन सातेली माँ ने ये किताब जला दी वह केवल अपनी छोटी बेटी को ही पढ़ाना चाहती थी हिम्मत करके बोलती है में आई.ए.एस. बनना चाहती हूँ। कलेक्टर के उन्हें काफी गाइड किया लेकिन उसने हिम्मत ना हारी उसने फिर किताबे जुटाई और फ्रेन्ड्स के यहां पढ़ने लगी और कहने लगी स्कूल में एक्स्ट्रा क्लास लगती है एक दिन निशा कॉलेज खत्म कर फ्रेन्ड्स के यहां जाती है सोतेली माँ को जब यह पता चलता है तो वह उसे बहुत जलील करती है और वह उसकी शादी की तैयारी करती है लेकिन पिता ना कहते है तो माँ लड़ने लगती है पिता शादी के लिए तैयार नहीं होते वह पूछती है आप पैसे कहां से लाओगे पिता ने कहा मेरे पास पाँच लाख की एफडी है तो माँ कहती है यह मेरी छोटी बेटी के काम आयेगी ये सब बाते निशा ने सुन ली लेकिन निशा की जबरजस्ती शादी कर दी जाती है तो वह ‘‘वक्त कभी भी एक जैसा नहीं होता दुनिया की कोई ताकत मुझे वर्दी पहनने से नहीं रोक सकता’ ससुराल में काम कर पढ़ाई करने लग जाती एक दिन सासुमाँ उसकी माँ से शिकायत करती है यह काम नहीं करती सारे दिन पढ़ाई करती है उसका पति भी डिबोर्स माँगता है, उसने कहा अच्छा में तैयारी छोड़ दूं लेकिन परीक्षा एक बार जरूर दूंगी पति तैयार हो जाता है अब वह परीक्षा देती है और प्री, मेन्स एवं इन्टरव्यू में पास होती है और उनकी 122वीं रेंक बनती है इसलिए कहते है कुछ करने का जज्बा हो तो विषम से विषम परिस्थितियों में भी सफलता हांसिल की जा सकती है। उसने एक ही दिमाग में बात रखी हुई थी कि वक्त कभी एक जैसा नहीं होता है दुनिया की कोई ताकत मुझे आई.ए.एस. बनने से नहीं रोक सकता और उसने यह कर दिखाया सलाम है ऐसी बिटिया को। 14 ऑटो ड्रायवर का बेटा बना आई.ए.एस.:- लड़का अन्सार महाराष्ट्र के रहने वाले है लेकिन गरीबी के कारण उसके पिता ने प्राथमिक विद्यालय में ही पढ़ाई छुड़वा दी किन्तु टीचर के समझाने पर पूनः स्कूल में दाखीला किया इनकी घर गृहस्थी बड़ी मुश्किल सो चल पा रही थी उसने पढ़ाई के साथ-साथ होटल के वेटर का काम करता था और पढ़ाई का खर्च निकाल लेता था जब-जब भी समय मिलती पढ़ाई करता था जब उसने ग्रेजुएशन किया तो टीचर ने उन्हें यु.पी.एस.सी. परीक्षा देने का सुझाव दिया वर्ष 2015 में उसकी मेहनत रंग लाई और 361वीं रेंक पाई वह महज उसे समय 21 वर्ष का था अन्सार के ऐसे जज्बे को सलाम। उल्लेखित उदाहरण इस बात के प्रतीक है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके जीवन का लक्ष्य होता है तथा वे अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार रहते है अपनी सोच पॉजिटीव एनर्जी में लगाना चाहिए अपना अमूल्य समय नेगेटीव सोच में नहीं लगावे हारते वहीं है जो नेगेटीव सोचते है और यह कहते है कि मेरे किस्मत में नहीं है हार का दूसरा पहलू किस्मत है। एक बार चन्द्रगुप्त मोर्य ने चाणक्य से कहा कि जो किस्मत में ही नहीं है तो कैसे मिलेगा इस पर चाणक्य ने कहा मेहनत करने से ही किस्मत चमकती है, हमें ईमानदारी से लक्ष्य के साथ मेहनत करना है किस्मत अपने आप चमक जाती है अब्दुल कलाम साहब कहते है कि सपना वो नहीं होता जो रात को सोते समय देखें, सपना वो होता है जो सोने नहीं देता जिस दिन आपने आँखे खोलकर सपना देखना शुरू कर दिया उस दिन आपकी कामयाबी को कोई नहीं रोक सकता। एक कारीगर जब पत्थर पर चोट मारता है तो पत्थर को मजे नहीं दर्द होता है किन्तु जब तराश कर मूर्ति बन जाती है तो पूज्यनिय हो जाती है इसी प्रकार जब विद्यार्थी आई.ए.एस. कि तैयारी कर आठ-आठ, दस-दस घण्टे पढ़ता है तो वह समय बड़ी परेशानी का होता है और जब वह सफल हो जाता है तो बड़ा आनन्द आता है। उल्लेखित उदाहरण इस बात के प्रतिक है कि सब कुछ संभव है, एक कोल्ड्रिंक्स की बाटल का ढक्कन जब तक नहीं खुलता है शान्त रहती है लेकिन खुलते ही एक्टीव हो जाती है इसी प्रकार मनुष्य के मस्तिष्क का ढक्कन खुलते ही वह एक्टीव हो जाता है ऐसे समय आवश्यकता रहती है सही दिशा दिखाने वालो कि क्योंकि मन चंचल हा ेता है और जो रास्ता दिखता है उस पर चल पड़ता है। अंत में यही कहूँगा कि धैर्य, संयम, आत्म विश्वास का जुनून के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ते है तो हमें लक्ष्य प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। भवदीय रमेश चन्द्र कदम जिलाध्यक्ष (बुथ प्रबंधन प्रकोष्ठ) कांग्रेस नीमच मो. 9425328104