KHABAR:- धार्मिक, अंतरात्मा के ज्ञान को समझे बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है -प्रशम सागर जी महाराज, दिगंबर जैन मंदिर मेंअमृत प्रवचन श्रृंखला प्रवाहित,पढ़े खबर

MP44NEWS April 20, 2024, 11:45 am Technology

नीमच19अप्रेल( केबीसी न्यूज़)अंतरात्मा के ज्ञान को समझे बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है। संवेदना के बिना जीवन अधूरा होता है। जीव दया के बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता है। तपस्या हमें जीव दया की प्रेरणा देती है। जीवो की दया के लिए हड्डी वाले पाउडर का मंजन नहीं करना चाहिए तभी हमारी आत्मा को सुख शांति मिल सकती है।यह बात प्रशम सागर जी महाराज ने कही।वे फोर जीरो विद्युत केंद्र के पीछे स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर जी में महावीरजी जन्म कल्याणक महोत्सव के पावन उपलक्ष्य में प्रतिदिन सुबह 8 बजे प्रवाहित धार्मिक प्रवचन श्रृंखला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सत्य को छोड़ कर स्वयं को जानने की चेष्टा, भगवान को छोड़कर भगवन को प्राप्त करने की चेष्टा ,ध्यान को छोड़कर परमात्मा को प्राप्त करने की चेष्टा हमें सही दिशा में नहीं ले जाती है।हम परमात्मा तो बनना चाहते हैं लेकिन ध्यान नहीं करना चाहते हैं।यदि हमें परमात्मा बनना है तो ध्यान करना चाहिए। सत्य एवं स्वयं में से किसको चुनना है यह हमें ज्ञात नहीं है।धर्म के नाम पर लोग जीवों की बलि चढ़ा रहे हैं उन्हें धर्म सत्य का ज्ञान नहीं है धर्म सहज मिल जाता है तो हम उसको पानी की तरह बहा रहे हैं उसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं चिंतन का विषय है। यदि हमारे जीवन भर के परिश्रम की कमाई कोई यदि कोई कचरे में फेंक दे तो कैसा लगेगा। धर्म के लिए किया गया पुरुषार्थ की पुण्य के रूप में जीवन में साथ चलता है।प्रकृती वही देती है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। प्रकृति वह नहीं देती है जिसकी हमारी इच्छा होती है।पानी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए इससे जीव हत्या का पाप लगता है। कम से कम पानी में अधिक से अधिक कार्य करना चाहिए।धर्म कर्म का पुण्य नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं लेकिन धर्म के प्रति जागृति जीवन में अवश्य रखना चाहिए।हमसे प्रतिदिन जीव हत्या हो रही है लेकिन हम परमात्मा से क्षमा भी नहीं मांग रहे हैं चिंतन का विषय है।मदिरा शराब के अड्डों पर बिक रही है। दूध घर-घर जाकर बिक रहा है चिंतन का विषय है।लोगों के पास दुकान व्यवसाय करने के लिए समय है लेकिन धर्म पुण्य पुरुषार्थ के लिए समय नहीं है चिंतन का विषय है। संसार में हमने विश्व का धन संपत्ति सब कुछ पा लिया और यदि स्वयं को छोड़ दिया तो हमनें कुछ भी प्राप्त नहीं किया।लेकिन फिर भी हम इस धन संपत्ति के मालिक नहीं बन सकते हैं। घरों में कमरे अनेक है लेकिन संतान एक है फिर भी हमारा धन संपत्ति के प्रति मोह काम नहीं हो रहा है। चिंतन का विषय है।यदि हम धर्म नष्ट करेंगे तो हम कहां जाएंगे चिंतन का विषय है।हम अच्छे धर्मात्मा व्यक्ति को जन्म नहीं देंगे तो हमें धर्म के लिए मंदिर में जगह नहीं मिलेगी। सभी बच्चे पढ़ने लिखने बाहर चले जाएंगे तो धर्म समाप्त हो जाएगा।हमारे पास बैंक बैलेंस धन संपत्ति सब कुछ है और संवेदना नहीं है तो हमारा जीवन बेकार है।अभी हमने धन संपत्ति वैभव सब कुछ प्राप्त कर लिया स्वयं के कल्याण के लिए कुछ नहीं किया तो यह महंगा सौदा है। धर्म अर्थ काम मोक्ष को जीवन में समझना होगा तभी हमारा कल्याण हो सकता है धर्म के साथ पुरुषार्थ करना चाहिए।कोई यदि संयम जीवन की प्रेरणा ले तो सहयोग करना चाहिए। शील सागर जी महाराज साहब ने लाखों वर्ष से हम रावण का पुतला दहन कर रहे हैं कभी सोचा है की क्यों कर रहे हैं जबकि हर दिल में रावण का साम्राज्य फैला है चिंतन करें कि हम क्या कर रहे हैं .... काव्य रचना प्रस्तुत करते हुए मंगलाचरण भी किया। धर्मसभा में समत्व सागर जी महाराज ने कहा कि जीवन में यदि नियतता नहीं है तो जीवन मरण के समान होता है। जीवन में नियत नहीं है। तीर्थंकर भी मृत्यु से बच नहीं पाए थे। मनुष्य स्वार्थ और लालच के कारणअनित्य जीवन के पीछे पूरा जीवन निकाल देता है जहां पार्टी होती है वहां चले जाते हैं जहां संतों के प्रवचन होते हैं वहां जाने के लिए उनके पास समय नहीं है चिंतन का विषय है रावण था और राम थे अब हम स्वयं चयन करें कि हमें था कहलाना है या थे कहलाना है। जैन श्रमण संस्कृति हमें उत्कृष्ट जीवन जीना सिखाती है। मनुष्य समाधि मरण के लिए अभ्यास करें तो उसके जीवन की गति सुधर सकती है। संसार की भौतिक हर वस्तु के पीछे प्रीति के भाव हमारे लिए असमाधि बना रहे है। जबकि हमें मकान में एक कक्ष तपस्याऔर साधु संत की तरह जीवन जीने के लिए बनाना चाहिए ।जिसमें एक लकड़ी का पाठ ,पीछि ,कमंडल रखकर संत बनने का निरंतर अभ्यास करना चाहिए ताकि यदि असमय पूर्व मृत्यु आए तो उसी कक्ष में आए तो हमारा समाधि मरण हो सकता है। संपत्ति और कपड़े का मोह छोड़ देना चाहिए। मृत्यु के बाद लोग कपड़े भी छीन लेंगे। सोना चांदी साथ नहीं जाएगा ।पुण्य कर्म करेंगे तो आत्मा के साथ हर जन्म में साथ रहेगा ।समाज की एकता और अखंडता के लिए सभी को सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए ।एक मंदिर एक इतिहास के मार्ग पर चलना चाहिए। धर्म सभा का संचालन विशाल विनायका जैन ब्रोकर्स ने किया तथा आभार दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स ने माना। उक्त जानकारी ** अमन विनायका ने दी।

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