चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन विधानसभा क्षेत्र के राशमी उपखंड में रहने वाले 23 साल के सिद्धार्थ पोखरना ने UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में 216वीं रैंक हासिल कर जिले का नाम रोशन किया है।
सिद्धार्थ ने यह सफलता अपनी दूसरी कोशिश में पाई है। पहली कोशिश में वे थोड़े अंकों से चूक गए थे, लेकिन हार नहीं मानी। बिना कोचिंग के केवल सेल्फ स्टडी के दम पर उन्होंने यह मुकाम हासिल किया। इंजीनियरिंग के दौरान ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा को अपना लक्ष्य बनाया और अब अपने पिता का सपना पूरा कर दिखाया है।
पिता करते है कपड़ों का व्यवसाय
सिद्धार्थ का परिवार मध्यमवर्गीय है। पिता प्रकाश पोखरना कपड़ों का व्यवसाय करते है और मां हेमलता पोखरना घरेलू महिला होने के साथ-साथ LIC एजेंट भी हैं। छोटा भाई दिव्यम पोखरना जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई कर रहा है।
पिता का सपना था कि उनके बेटे व्यापार की बजाय देश की सेवा करें। वह हमेशा से चाहते थे कि उनके बेटे प्रशासनिक अधिकारी बनें। यह सपना उन्होंने सिर्फ देखा नहीं बल्कि अपने बेटों में रोपित भी किया, और सिद्धार्थ ने इसे साकार करके दिखा दिया।
सिद्धार्थ अपने पूरे परिवार के साथ खुशी बांटते हुए।
शिक्षा की नींव: छोटे कस्बे से बड़ी उड़ान
सिद्धार्थ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 8वीं क्लास तक राशमी के एक स्कूल से ली। इसके बाद उन्होंने 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई उदयपुर के स्कूल से की। वे शुरू से ही पढ़ाई में मेधावी थे। इसके बाद उन्होंने देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान NITK (द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी कर्नाटक) से बीटेक (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग) किया। पढ़ाई के दौरान भी वे बेहद अनुशासित और लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे।
बीटेक करते समय सिद्धार्थ ने प्राइवेट जॉब करने का सोच लिया था, लेकिन इंजीनियरिंग के तीसरे साल में उन्होंने अपने पिता के सपने को अपना सपना बना लिया। इंजीनियरिंग के तीसरे साल में उन्होंने IAS की तैयारी करने का निर्णय ले लिया और चौथे साल में पढ़ाई के साथ-साथ UPSC की तैयारी शुरू कर दी। 2022 में बीटेक पूरा करने के बाद वे दिल्ली चले गए और वहीं रहकर प्रशासनिक सेवा की तैयारी में जुट गए।
कोचिंग नहीं, आत्मविश्वास और सेल्फ स्टडी पर भरोसा
आज के समय में जहां अधिकतर युवा UPSC जैसी कठिन परीक्षा के लिए महंगी कोचिंग का सहारा लेते हैं, वहीं सिद्धार्थ ने बिना किसी कोचिंग के ही इस परीक्षा में सफलता हासिल की। उन्होंने सेल्फ स्टडी को अपना हथियार बनाया और कठिन मेहनत व अनुशासन से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहे।
उनका मानना है कि कोचिंग में काफी समय फालतू चला जाता है, जबकि खुद से पढ़ने में चीजें गहराई से समझ में आती हैं और सेल्फ कॉन्फिडेंस भी बढ़ता है। वे कहते हैं, "मेरे पास कोचिंग का ऑप्शन था, लेकिन मैंने तय किया था कि मैं खुद पढ़कर ही यह परीक्षा पास करूंगा। मुझे अपनी मेहनत पर पूरा विश्वास था।"
उन्होंने दिन का एक-एक घंटा योजना बनाकर पढ़ाई में लगाया। न्यूजपेपर, मैगजीन, ऑनलाइन कंटेंट, मॉक टेस्ट और पिछले सालों के क्वेश्चन पेपर्स का गहराई से पढ़ाई करना उनकी तैयारियों का हिस्सा रहा।
पहली कोशिश में असफल रहे लेकिन सिद्धार्थ ने हार नहीं मानी और दूसरी कोशिश में UPSC में अपनी 216वीं रैंक बनाने में सफल रहे।
पहली कोशिश- असफलता से सीखने की यात्रा
सिद्धार्थ ने UPSC परीक्षा का पहली कोशिश साल 2023 में किया था। हालांकि वे कुछ नंबरों से मुख्य सूची में जगह बनाने से चूक गए। लेकिन इस असफलता ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि और ज्यादा दृढ़ बना दिया।
उन्होंने अपनी कमियों को पहचाना, उन्हें दूर करने के लिए रणनीति बदली, टाइम टेबल को और ज्यादा सख्त बनाया और फिर से एग्जाम में बैठने की तैयारी शुरू कर दी। इस बार उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस पहले से ज्यादा मजबूत था और मेहनत दोगुनी।
दूसरी कोशिश और 216वीं रैंक: मेहनत की जीत
दूसरी कोशिश में सिद्धार्थ ने न केवल UPSC की मुख्य परीक्षा (Mains) को पास किया, बल्कि इंटरव्यू में भी शानदार प्रदर्शन किया। उनका लास्ट सिलेक्शन देश के सबसे कठिन और प्रतिष्ठित माने जाने वाले इस एग्जाम में 216वीं रैंक के साथ हुआ।
सिद्धार्थ ने बताया कि इंटरव्यू में उनसे कई विषयों पर सवाल पूछे गए। सबसे कठिन सवाल उन्हें NDPS एक्ट (ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेंस एक्ट) के प्रोविजन और कुर्ग संस्कृति पर लगे।
इसके अलावा उनसे सेस टैक्स, कोचिंग इंडस्ट्री की भूमिका, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी जैसे सब्जेक्ट्स पर भी सवाल किए गए। हालांकि उन्हें सबसे आसान सवाल कंप्यूटर साइंस और आईटी में अंतर का लगा, क्योंकि उनका बैकग्राउंड इंजीनियरिंग से था।
सिद्धार्थ की सोच: एक जिम्मेदार अफसर बनकर समाज की सेवा
सिद्धार्थ का सपना सिर्फ एक अफसर बनना नहीं है, बल्कि एक ऐसा अधिकारी बनना है जो लोगों से सीधे जुड़कर उनकी समस्याओं का समाधान कर सके। वे कहते हैं:
"IAS एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां मुझे वह शक्ति मिलेगी जिससे मैं लोगों की लाइफ में पॉजिटिव बदलाव ला सकूं। यही मेरा लक्ष्य है – एक ज़िम्मेदार अफसर बनकर समाज की सेवा करना।"
परिवार और समाज की प्रतिक्रिया
जब रिजल्ट आया, तो परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। माता-पिता की आंखों में आंसू थे, लेकिन यह आंसू थे गर्व और संतोष के। समाज के लोग, रिश्तेदार, परिचित और शिक्षक–सभी ने फोन, मैसेज और सोशल मीडिया पर उन्हें बधाई दी। जिला कलेक्टर आलोक रंजन को भी जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने सिद्धार्थ को फोन कर बधाई दी।
राशमी कस्बा और चित्तौड़गढ़ जिले में सिद्धार्थ की इस सफलता की चर्चा चारों ओर हो रही है। यह उपलब्धि न केवल सिद्धार्थ की है, बल्कि हर उस युवा की प्रेरणा है जो छोटे शहरों या गांवों से बड़े सपने देखता है।
सिद्धार्थ ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, गुरुजनों और दोस्तों को दिया। उन्होंने कहा:
"मेरी सफलता मेरे परिवार और टीचर्स के बिना पॉसिबल नहीं थी। उनके सहयोग और विश्वास ने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया।"
भावी योजना और संदेश
सिद्धार्थ अब प्रशासनिक सेवा के जरिए देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं। उनका मानना है कि युवाओं को खुद पर भरोसा रखना चाहिए और लक्ष्य को लेकर स्पष्ट रहना चाहिए।
उनका संदेश है:
"अगर आपने किसी लक्ष्य को ठान लिया है, तो मेहनत करने में कोई कसर न छोड़ें। असफलता आए तो घबराएं नहीं, बल्कि उससे सीखें। कोचिंग जरूरी नहीं, जरूरी है आपकी मेहनत, आपका अनुशासन और आत्मविश्वास।"