इंदौर । इंदौर में बावड़ी हादसे के बाद अब जावरा नगर पालिका भी अलर्ट हो गई है और 135 साल पुराने जर्जर घोषित हो चुके घंटाघर को तोड़ने की कवायद फिर से शुरू हो गई हैं। घंटाघर जीर्ण-शीर्ण है और पीडब्ल्यूडी की प्रॉपर्टी होने से विभाग इसे तोड़ने के नोटिस नवंबर 2020 में दे चुका है। इसके पहले और बाद में नपा ने तोड़फोड़ शुरू भी की थी लेकिन यहां के 52 दुकानदारों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और स्टे ले आए। तब से मामला लंबित है। हाल ही में पीडब्ल्यूडी ने अपनी तरफ से घंटाघर को जीर्ण शीर्ण बताकर कोर्ट में जवाब रिपोर्ट पेश की है। इस बीच इंदौर का बावड़ी हादसा हो गया। वहां कई जिम्मेदारों पर केस दर्ज हुआ। नपा ने मौजूदा तस्वीरों के साथ पेश की स्टे हटाने की अर्जी इसे देखते हुए नगरपालिका ने इंदौर हाईकोर्ट में घंटाघर की मौजूदा तस्वीरों के साथ स्टे हटाने की अर्जी पेश कर दी। 5 अप्रैल को सुनवाई हो सकती है। वर्ष 2002 से लेकर 2020 के बीच घंटाघर भवन को तोड़ने के कई प्रयास हो चुके हैं। अगस्त 2002 में इसका टॉवर गिराया था। 1888 में निर्मित घंटाघर को नगरपालिका ने रिपेअर योग्य नहीं माना और 16 जून 2016 को जीर्ण शीर्ण घोषित किया था। पीडब्ल्यूडी तो 2006 में ही जर्जर घोषित कर चुका है। 19 सितंबर 2016 को परिषद सम्मेलन में यह तय करते हुए कि यहां काबिज दुकानदारों के विस्थापन का ध्यान रखते हुए इसे तोड़कर कॉम्प्लेक्स बनाया जाएगा और उसी सम्मेलन में घंटाघर को डिस्मेंटल करने के लिए टेंडर करने का निर्णय हुआ। अप्रैल 2017 में नपा ने इसके लिए 4 लाख 77 हजार 786 रुपए में रतलाम के अल जुबेर को टेंडर कर दिया। फिर घंटाघर को ऊपर से थोड़ा तोड़ा भी गया लेकिन बाद में मामला कोर्ट में जाने से तोड़ने की कार्रवाई रोकनी पड़ गई। तब से मामला यथावत है और फाइल ठंडे बस्ते में चली गई थी। लेकिन प्रीमियर मिल की दीवार व गोदाम तोड़ने के बाद और इंदौर बावड़ी हादसे से सबक लेते हुए प्रशासन फिर सक्रिय हो गया। पीडब्ल्यूडी एसडीओ हिमांशु जैन का कहना हैं कि हमने जवाब पेश कर दिया हैं। अब सुनवाई का इंतजार हैं। राज्य सरकार को तय करना था घंटाघर मामले में 5 फरवरी 2018 को हाईकोर्ट की डबल बैंच ने एक फैसला दिया था कि घंटाघर प्राचीन संरक्षित इमारत है अथवा नहीं ये राज्य सरकार तय करे और पक्षकारों की दलीलों पर विचार करते हुए कानूनी दायरे में ही कोई निर्णय ले। फिर नवंबर 2020 में पीडब्ल्यूडी व नपा ने दुकानदारों को दुकानें खाली करने का नोटिस जारी किया तो वे फिर कोर्ट गए और 10 नवंबर 2020 को घंटाघर तोड़ने संबंधी कार्रवाई पर स्टे ऑर्डर लेकर आए। उसमें प्रशासन व पीडब्ल्यूडी को जवाब पेश करना था जो लंबे समय तक नहीं हुआ। इससे मामला लंबित रहा।