एक एकड़ में 4 एकड़ जितनी खेती और प्रोडक्शन। मिट्टी की जरूरत नहीं, पानी भी सामान्य खेती की तुलना में मात्र 20% और लागत भी बेहद कम। ये सारी खूबियां हैं हाइड्रोपोनिक खेती की। इसे इंदौर में एक कपल ने शुरू किया है। तकनीक इजराइल में विकसित हुई है, जहां खेत कम हैं इसलिए घरों में ऐसी खेती होती है। यह तकनीक भारत में अभी केवल सब्जियों तक सीमित है। कपल का लॉकडाउन वाला ये स्टार्टअप अब 1 करोड़ कमाई वाले क्लब में पहुंच गया है। यह मध्यप्रदेश में कमर्शियल लेवल का पहला बड़ा फार्म है। वे लोगों को खेती की यह तकनीक तो सिखाते ही हैं, अपने खेत से सब्जियां तोड़ने का मौका भी देते हैं। इस दंपती का नाम है ऋषभ मेहता (29) और पूजा (26) जो संगम नगर में रहते हैं। आइए स्मार्ट किसान में जानते हैं हाइड्रोपोनिक खेती की तकनीक... किस्सा सात साल पहले का है। ऋषभ तब 22 साल के थे। उन्हें विटामिन B12 और D3 की कमी हो गई। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने सप्लीमेंट्स लिख दिए। सप्लीमेंट्स लेने से पहले ही ऋषभ प्रोजेक्ट मैनेजमेंट एडं कमर्शिलाइजेशन की पढ़ाई के लिए 2017 में ऑस्ट्रेलिया चले गए। वहां गए और कुछ दिनों बाद जांच कराई तो पता चला कि विटामिन B12 और D3 की कमी दूर हो गई है। बिना सप्लीमेंट्स के ये कमी दूर होने पर उन्हें शंका हुई। उन्होंने जानकारी जुटाई ताे पता चला कि ऑस्ट्रेलिया में जो सब्जियां वो खा रहे थे उनमें पर्याप्त मात्रा में मिनरल्स और विटामिन हैं। ऋषभ भारत लौटे ताे उन्हें विटामिन B12 और D3 की फिर से कमी हो गई। ऋषभ बताते हैं भारत में पेस्टिसाइड्स का अधिक उपयोग होने के कारण नेचुरल मिनरल-विटामिन नष्ट हो जाते हैं, इसलिए हमें कई बीमारियां हो जाती हैं और हम कम उम्र में ही बीमार रहने लगते हैं। अब बात उनके स्टार्टअप की ऋषभ बताते हैं कि आने वाले समय में भारत में भी जमीन की कमी हो जाएगी, इसलिए खेती के विकल्पों पर अभी से काम करने की जरूरत है। यही सोचकर हमने हाइड्रोपोनिक फार्मिंग की ओर कदम बढ़ाए। पत्नी और परिवार से बात करने के बाद इस दिशा में कदम बढ़ाया। हमने एक साल पहले यानी मार्च 2022 में नेमावर रोड पर एक करोड़ रुपए के निवेश के साथ 'इकारिया' फ्रेश के नाम से इस खेती की शुरुआत की। इसे शुरू करने से पहले ऑनलाइन रिसर्च की, डॉक्यूमेंट्री देखी, उन्होंने इस तरह से खेती करने वाले दूसरे फार्म तलाशे। अहमदाबाद, बड़ौदा और गुड़गांव के फार्म विजिट किए। ऑनलाइन कोर्सेस भी किए। उन्हें ये भी चिंता थी कि इंदौर में सब्जियों के लिए मोलभाव होता है ऐसे में ये सब्जियां कौन खरीदेगा? इस सवाल के जवाब में ऋषभ और उनकी पत्नी पूजा ने सात सौ से ज्यादा लोगों से बात की। इन सब्जियों के बारे में बताया। लोगों को जागरूक करने और बिजनेस को बढ़ाने के लिए डिजिटल एड और सोसाइटी कैंप भी लगाए। पूजा कहती हैं कि कोविड के कारण लोग अपने स्वास्थ्य पर भी खर्च करने लगे हैं, इसलिए मुझे लोगों को समझाने में ज्यादा समस्या नहीं आई। लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो गए हैं, इसलिए हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिला। उनकी सब्जियां शहर के सभी प्रमुख स्टोर पर उपलब्ध हैं। वे इस बिजनेस से हर माह 3 से 5 लाख तक की सेल कर रहे हैं। ऐसी होती है फार्मिंग हाइड्रोपोनिक फार्मिंग यानी सॉयल-लेस फार्मिंग। इसके लिए जमीन यानी मिट्टी की जरूरत नहीं होती है। जमीन की जगह पाइप या स्टैंड में प्लांटिंग की जाती है। पौधों की जड़ें इसी पानी में रहती है। पौधे के लिए जरूरी मिनरल और विटामिन लिक्विड फॉर्म में पानी के जरिए पौधों को मुहैया कराए जाते हैं। पानी को आरओ मशीन से फिल्टर किया जाता है। इससे कम समय में अच्छा उत्पादन होता है। इस प्रोसेस में पौधों को अलग-अलग जगह रखा जाता है। इस खेती में बीज के खराब होने की आशंका बहुत कम ही होती है। पूरा सिस्टम ऑटोमेटेड होता है, इसलिए कहीं से भी बैठकर इसे ऑपरेट कर सकते हैं। 22 हजार पौधे लगाते हैं एक बार में ऋषभ बताते हैं कि फार्म में एक बार में अलग-अलग सब्जियों के 22 हजार पौधे लगाते हैं। एक बार में वे 15 से 20 तरह की सब्जियां उगा लेते हैं। इनके बीज हैदराबाद, पुणे और गुड़गांव से मंगवाते हैं। ये सब्जियां लगाते हैं ऋषभ बताते हैं कि उनके वहां इटैलियन बेसिल, चेरी टमैटो, रेड स्विस चार्ड, बेबी पालक, ग्रीन ओरेगेनो, लेट्यूस (अलग-अलग टाइप की), केल, सेलरी, सनफ्लॉवर, रोजमेरी, पास्ले सहित अन्य वैरायटी की सब्जियां उगाई जाती हैं।