नीमच। नीमच जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर मनासा तहसील का गांव भाटखेड़ी जहां के प्रगतिशील किसान कमलाशंकर विश्वकर्मा औषधीय फसलों की खेती के साथ साथ जैव विविधता के क्षेत्र में भी नवाचार कर रहे है। विश्वकर्मा ने माइक्रोबायोलॉजी के साथ-साथ समाजकार्य एवं पत्रकारिता की पढ़ाई की है। वर्तमान में कोरोना के बाद से गांव में ही रहकर कृषि क्षेत्र में औषधीय फसलों के उत्पादन, वृद्धि एवं प्रजातियों के बीज संकलन पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं। किसान कमलाशंकर विश्वकर्मा ने कृषि एवं उद्यानिकी के जिला एवं ब्लॉक के अधिकारियों के साथ साथ आत्मा उप संचालक डॉ.यतिन मेहता के मार्गदर्शन में अपने खेत को फूड फॉरेस्ट कॉन्सेप्ट पर विकसित किया है। उन्होने देवारण्य योजना से प्रेरित होकर नवाचार करते हुए बांस के खेत में प्रथम वर्ष में सह-फसल के रूप में अश्वगंधा एवं शतावरी की औषधीय फसल लगाकर मुनाफा कमाया है। जिसके लिए उनको आत्मा परियोजना से उत्कृष्ट उत्पादन के लिए 25 हजार रूपये एवं प्रथम पुरस्कार भी दिया गया। दूसरे साल से फोटोशूट एवं फ़िल्म निर्माण के लिए भी कलाकर एवं प्रोफेशनल फोटोग्राफर उनके खेत मे आकर शूटिंग भी कर रहे है, जिससे अतिरिक्त आमदनी का एक नया द्वार खुला है। शुरुआत स्तर पर एक फोटोशूट का उनको 1 हजार 100 रुपये प्रति शूट एवं सामान्य इंट्री पर प्रति व्यक्ति 20 रुपये की सहयोग राशि प्राप्त हो रही है। राष्ट्रीय बाँस मिशन में विश्वकर्मा ने1100 पौधे बाँस के लगा रखे है। यह सब देखने दूर दूर से किसान आते है और जानकारी का लाभ ले रहे है। उनके द्वारा खेत पर तरह- तरह की लगभग 30-40 प्रकार की औषधियों को प्राकृतिक रूप से संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा हैं। उनके खेत पर कौंच बीज (केमच), वराहीकंद (जटाशंकरी), गिलोय, नीली एवं सफेद अपराजिता, घृतकुमारी (एलोवेरा), कंटकारी, हड़जोड़, हरसिंगार (परिजात), गुड़हल, नागदौन, अपामार्ग (लटजीरा), धतूरा, कनेर, कडुनाय (नामी), शिवलिंगी (पुत्र जीवक वटी), किंकोडा, विधारा की बेल, छोटी एवं बड़ी दूधी, शतावरी, मूषपर्णी, बहुफली, अतिबला, छोटा गोखरू (शंखेश्वर), घमरा (ट्राइडेक्स), कचनार, पलाश, मेहंदी, बेशर्म बेल/बेहया, खैर, अश्वगंधा, आंवला, बहेड़ा, अरंडी, ईमली, नीम, सीताफल आदि औषधियां वर्तमान में देखी जा सकती है।