नीमच नगरपालिका का किला एक बार फिर भाजपा ने स्वाति चौपडा का चेहरा सामने रख फतह कर लिया। कहने को भाजपा के पास बहुमत था लेकिन भाजपा नेता संतोष चौपडा के लिए यह राह आसान नही थी। भाजपा में भी आपसी कलह जमकर फूट रही थी। भाजपा के तीन प्रबल दावेदार स्वाति गौरव चौपडा, वंदना खण्डेलवाल, रंजना करणसिंह परमाल शुरू से आखिर तक दौड में बने हुए थे। सबके अपने गुट अपने समर्थित पार्षद थे। संतोष चोपडा के मेनेजमेंट और शीर्ष नेतृत्व से अच्छे संबंध काम आए। इसके साथ ही भाजपा में बगावत का डर शुरू से आखिर तक बना हुआ था। पार्टी की नीति- रिती काम आई लेकिन भाजपा नेता संतोष चोपडा ने बतौर चुनौती इस काम को अंजाम दिया। कांग्रेस खरीद-फरोख्त और परिषद के बनाने के दावे करती रही और अपने पार्षद भी बचा नही पाई। भाजपा की तरफ से कहना को वह राष्ट्रभक्त कांग्रेसी है और कांग्रेस के पास सिवाए चुप्पी के कुछ नही है लेकिन यह पब्लिक है सब जानती है। कांग्रेस के पास 14 पार्षद, भाजपा के पास 23 पार्षद और 03 निर्दलीय पार्षद की सीधी गणित थी। लेकिन जब नपाध्यक्ष के लिए वोटिंग हुई तो भाजपा के पास 31 वोट नपाध्यक्ष के खाते में चले गए। जिससे साफ नीमच की जनता ने अंदाजा लगा लिया की 03 निर्दलीय और 05 कांग्रेसी स्वाति चोपडा के पक्ष में आ गए है। सुत्रो की माने तो कांग्रेस के मुस्लिम पार्षदो ने भी स्वाति चोपडा को अपना समर्थन दिया है। भाजपा नेता संतोष चोपडा ने अपने मेनेजमेंट के सहारे कांग्रेस में सेंधमारी की इसके साथ निर्दलीयों को साध लिया। भाजपा पार्षदों में भी संतोष चोपडा अपनी पैठ बना चुके थे। एक मजबूत परिषद के लिए सत्ता-संगठन की मजबूरी स्वाति चोपडा को अधिकृत करने की रही। इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता है कि स्वाति चोपडा की जगह अगर कोई ओर नाम अधिकृत किया जाता तो भाजपा के खाते में यह बहुमत नही आता। नीमच कांग्रेस की बात की जाए तो बडे-बडे कांग्रेस के नेताओ की तर्ज पर नीमच कांग्रेस के पार्षदो ने बिककर अपनी परंपरा जारी रखी और पार्टी से गद्दारी की। यह कांग्रेस के लिए सबसे बडा खसारा है। वार्ड स्तर के नेता अगर बिकने लगे तो कांग्रेसियो का घर-घर जाना भी मुश्किल हो जाएगा।