भारत सरकार द्वारा वर्ष 2023 में अध्यादेश के माध्यम से भारतीय न्याया प्रणाली के सरलीकरण हेतु भारतीय दंड संहिता 1860 के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता 2023, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 तथा साक्ष्य विधान के स्थान पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 लाया गया है, इस नये कानून का क्रियान्वयन 01.07.2024 से प्रभावशील किये जाने के निर्देशों के पालन में पुलिस मुख्यालय भोपाल से जारी दिशा निर्देशानुसार जिले के समस्त पुलिस अधिकारी / कर्मचारी को पृथक पृथक दिनांक को कार्यशाला आयोजित कर नये कानून अनुसार कार्यवाही किये जाने हेतु प्रशिक्षित किया गया है। साथ ही जिले के समस्त राजपत्रित अधिकारी एवं थाना / चौकी प्रभारियों को निर्देशित किया गया है कि वे अपने थाना/ चौकी क्षेत्रों में नये कानून के प्रभावशील होने के संबंध में आमजन को प्रचार प्रसार के माध्यम से अवगत करवाया जाये। भारत सरकार के निर्देशानुसार दिनांक 01.07.2024 से संपूर्ण भारतवर्ष में नवीन आपराधिक कानून 2023 भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 लागू हो रहा है। जिसके सफल क्रियान्वयन एवं आमजन में व्यापक प्रचार प्रसार हेतु पुलिस अधीक्षक मंदसौर अनुराग सुजानिया द्वारा मंदसौर जिलें के समस्त राजपत्रित अधिकारी (पुलिस), थाना/चौकी प्रभारियों सहित अधिकारियों एवं कर्मचारियों को निर्देशित किया गया है। उक्त नवीन आपराधिक कानून 2023 के संबंध में आज दिनांक 01.07.24 को मंदसौर जिले के जिला पंचायत भवन मंदसौर में नवीन आपराधिक कानून 2023 भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के संबंध में परिचर्चा (वर्कशॉप) का आयोजन किया गया । जिसमें कलेक्टर दिलीप यादव, पुलिस अधीक्षक अनुराग सुजानिया, नगर पालिका अध्यक्ष रमादेवी गुर्जर, जिला पंचायत सीईओ कुमार सत्यम, जिला पंचायत उपाध्यक्ष, जिला भाजपा अध्यक्ष नानालाल अटोलिया, पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया, पूर्व मंत्री नरेन्द्र नाहटा एवं अन्य प्रशासनिक एवं पुलिस के अधिकारी समेत शहर के अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गौतम सोंलकी द्वारा किया गया। पुलिस अधीक्षक मंदसौर अनुराग सुजानिया द्वारा वर्कशॉप में उपस्थित समस्त आमजनों को नवीन कानून के संबंध में जागरूक किया गया। पुलिस अधीक्षक द्वारा पूर्व कानून एवं बदलाव के साथ नवीन कानून के बारे में अत्यंत सरल भाषा में तुलना कर कानून में हुये बदलाव में बारे में बताया कि नवीन कानून वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप बनाया गया है। पूर्व में भारतीय दंड विधान (भादवि) के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), सी.आर.पी.सी. के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) एवं इंडियन एविडेंस एक्ट के स्थान पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 किया गया है। इसके अतिरिक्त बताया गया कि पूर्व में नाम भारतीय दंड संहिता था जिसमें दंड के साथ अपराधी को सुधारना प्रथमिकता था, जबकि नवीन कानून का नाम भारतीय न्याय संहिता है जिसमें मुख्य उद्देश्य अपराधी को दंड के साथ साथ पीडित को उचित न्याय भी मिले। नवीन कानून जिनके बारे में आमजन को जागरूक किया गयाः- 1. अपराध का पीड़ित व्यक्ति घर पर बैठकर E FIR कर सकता है। इसके लिए सिटीजन पोर्टल पर जाकरी E FIR में जाकर घटना का लेख करना है और तीन दिन के भीतर थाने जाकर उस थत् पर हस्ताक्षर करना होंगे। 2. अब भारत के किसी भी थाने में किसी भी क्षेत्र में घटित घटना को पीड़ित व्यक्ति लेखबद्ध करवा सकता है। थाना जीरो पर एफआईआर लेख कर घटना क्षेत्र वाले थाने पर इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित कर सकेगा। 3. 18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ गैंग रेप में दंड का प्रावधान मृत्युदंड कर दिया गया है। 4. आतंकवाद को पहली बार कानून में परिभाषित कर आतंकवादी कृत्य करने वालो पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। 5. संगठित अपराध को पहली बार कानून में परिभाषित कर उसमें संलिप्त होने वाले आरोपियों पर दांडिक प्रावधान किया गया है। 6. बच्चो के माध्यम से अपराध करवाने वालो के विरुद्ध पहली बार दांडिक प्रावधान किया गया है। 7. समूह द्वारा हत्या (MOB LYNCHING) को कानून में पहली बार परिभाषित कर में जघन्य अपराध मानते हुए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। 8. नवीन कानून में तकनीक को अत्यधिक महत्व दिया है जिसमे साक्षी के बयान मोबाइल से वीडियो बनाकर दर्ज करना, समंस वारंट की ई तामीली आदि शामिल है। 9. अपराध करके अर्जित की गई संपति की कुर्की का विशेष प्रावधान किया गया है जिसके तहत पुलिस अधीक्षक / पुलिस आयुक्त से अनुमति बाद विवेचक न्यायालय में कुर्की का आवेदन दाखिल कर सकता है और न्यायालय उसमें 14 दिन के भीतर सुनवाई बाद आदेश देंगी। 10. साक्षियों के संरक्षण के लिए "साक्षी संरक्षण स्कीम का प्रावधान है। 11. सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में सर्वप्रथम परिभाषित किया गया है और न्यायालय दंड के रूप में आरोपी से सामुदायिक सेवा करने का आदेश दे सकती है।